(Photo journalist राजू पुशोला की आंखों देखी। राजू birding के लिए अक्सर मालदेवता व आसपास के इलाकों में जाते हैं। आपदा को लेकर क्या कहता है राजू पुशोला का कैमरा और कलम देखिए और पढ़िए)
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मालदेवता क्षेत्र में आई आफत की बारिश के बाद के हालात देखकर 2013 की केदारनाथ त्रासदी का मंजर आंखों के सामने आ गया।
बांदल घाटी में शुक्रवार दोपहर बाद से ही लगातार हो रही बारिश ने देर रात गहरी नींद में सो रहे लोगों पर ऐसा कहर बरपाया कि कई मकान जमींदोज हो गए, सड़कें नदारद हैं, पुल धराशाई हो गए, सैकड़ों मवेशी सैलाब मैं बह गए, कई लोग घायल है एक मौत की पुष्टि हो चुकी है और सात ग्रामीण अभी भी मलबे में दफ्न बताए जा रहे हैं। चूंकि मालदेवता क्षेत्र में बर्डिंग के लिए अक्सर आना-जाना रहता है इसलिए इस इलाके के बहुत से लोगों को मैं निजी रूप से जानता हूं।
सरखेत प्राइमरी स्कूल के पास रहने वाली एक महिला जिनका मैं नाम नहीं जानता अक्सर मुझे घर के बाहर काम करती हुई मिलती थी जिन्हें मैं आते जाते ‘नमस्कार दीदी ‘ बोलकर निकलता था और वह बड़े स्नेह से मुस्कुराकर जवाब देती थी। सोमवार सुबह जब मैं सरखेत पहुंचा तो देखा कि उस महिला के दो मंजिला मकान का निचला हिस्सा लगभग पूरी तरह मलबे में दबा हुआ था।
वह महिला अपने घर की अन्य महिलाओं के साथ सैलाब में बचे-कूचे कपड़ों को सुखा रही थी। उनके घर की हालत देखकर मैं इतना सहम गया था कि मेरे मुंह से नमस्कार भी नहीं निकला, लेकिन उस महिला की डबडबाई आंखें और उनके मुंह से निकले शब्द ‘सब खत्म ह्वे गै’ सुनकर मैं वहां एक पल भी ना ठहर पाया।
फोटो जर्नलिज्म के अपने लगभग 20 साल के कैरियर के दौरान बहुत सी आपदाओं वह दुर्घटनाओं की कवरेज मैंने की है लेकिन जब हादसा या नुकसान किसी ऐसे व्यक्ति का हो जिन्हें आप पहले से जानते हो तो बहुत अधिक पीड़ा होती है। इस क्षेत्र में कवरेज के दौरान कई ऐसे लोग मिले जिनका बहुत सा नुकसान इस आपदा में हुआ था। उनका दर्द सुनकर मैं विचलित मन से लौट आया और रात भर ठीक से सो ना सका।