*काश! ’हंस फाउंडेशन’ से सीख लेती अन्य संस्थाएं …*
बड़ी से बड़ी आपदा का सामना डटकर तभी किया जा सकता है जबकि सरकार के साथ साथ गैर सरकारी संगठन और संस्थाएं भी इसमें सहयोग करती हैं। मिशन सिलक्यारा को अंजाम तक पहुंचाने में भी एक गैरसरकारी संस्था ‘हंस फाउंडेशन’ ने सरकार का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। इस संस्था ने 17 दिन तक चले बचाव अभियान में रेस्क्यू के दौरान सभी के लिए भोजन का प्रबंध कर सरकार का काम हल्का कर दिया। संस्था ने सिलकारा में रोज एक नहीं बल्कि तीन–तीन टाईम भंडारा लगाकर किसी को भी भोजन–पानी की कमी नहीं होने दी। इतना ही नहीं हंस फाउंडेशन की ओर से वहां पहुंचे उनके परिजनों को गर्म कपड़ों का इंतजाम किया। सुरंग से सुरक्षित बाहर निकलने पर सभी 41 श्रमिकों को एक किट उपहार में दिया, जिसमें एक जैकेट, ट्रैक सूट, इनर, जुराब इत्यादि 10 आइटम शामिल थे।
हुआ यूं कि 12 नवंबर को हादसे के बाद जब सिलक्यारा सुरंग में बचाव कार्य शुरू हुआ तो टनल के भीतर की विषम परिस्थितियों को लेखकर
सरकार की समझ में आ गया कि मिशन लंबा चलेगा। एक के बाद एक देश–विदेश की एजेंसियों के लगभग 250 लोग रेस्क्यू में जुट गए। चूंकि घटना स्थल बस्ती से काफी दूर थी लिहाजा बचाव में दिन–रात जुटे सभी लोगों के लिए वहां भोजन की व्यवस्था करना आसान नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्वे और पीएमओ मंगेश घिल्डियाल ने इस कार्य के लिए किसी सामाजिक संगठन या गैर सरकारी संस्था से मदद लेने का सुझाव दिया। उसके बाद घनसाली के एसडीएम शैलेंद्र नेगी ने पहल करते हुए हंस फाउंडेशन से भोजन व्यवस्था का आग्रह किया। अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हुए हंस फाउंडेशन ने सहर्ष सरकार के इस आग्रह को स्वीकार किया और रेस्क्यू समाप्त होने तक सिलक्यारा में भंडारे का आयोजन किया। एक महान अभियान में जुटे सैकड़ों लोगों को सम्मान के साथ भरपेट भोजन करवाया।
यहां जिक्र करना जरूरी है कि हंस फाउंडेशन समाज सेवा की दिशा में काम करने वाली उत्तराखण्ड की एक अग्रणी संस्था है। भोले जी महाराज और माता मंगला की यह राज्य के विकास और समाज के उत्थान में वर्षों से लगातार प्रेरणादायक कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पुनीत कार्य के लिए हंस फाउंडेशन का आभार प्रकट किया है।
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