तो क्या सियासी “शून्य” की ओर अग्रसर हैं हरक! 22 साल में पहली बार नहीं होंगे उत्तराखंड विधानसभा में! भाजपा-कांग्रेस ने मिलकर हरक की “ब्लैकमेलिंग वाली राजनीति” को कर डाला expose
Dehradoon. जिस भाजपा ने करीब 6 साल पहले डॉ हरक सिंह रावत को सिर माथे पर बैठाया था, उसी भाजपा ने हरक सिंह रावत को ऐसे सियासी मझधार में फंसा दिया है जहां से उनका सियासत में शून्य का सफर शुरू होता दिख रहा है।
सबसे बड़ी हैरानी की बात ये कि उत्तराखंड की राजनीति के इस धाकड़ बल्लेबाज को कांग्रेस ने भी इस लायक नहीं समझा कि उन्हें कहीं से टिकट दिया जाता। उत्तराखंड के 22 सालों के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है जब हरक विधानसभा में नहीं होंगे।
जिस अंदाज में हरक के मामले में भाजपा और कांग्रेस ने सुर में सुर मिलाया उससे यह भी जाहिर हो रहा है कि हरक की रोजाना की ब्लैकमेल वाली राजनीति को खत्म करने के लिए ही अंदरखाने हरक के खिलाफ ऐसी व्यूह रचना की गई कि वे न तो घर के रहे और न घाट के।
थोड़ा पीछे चलें तो पता चलता है कि जब हरक के दिल्ली में होने की खबर भाजपा को लगी तो तभी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह पता लगाने में जुट गया था कि हरक किस मकसद से दिल्ली में है। जैसे ही भाजपा sure हुई कि हरक कांग्रेसी होने वाले हैं तो उसने बगैर हरक को अगला पैंतरा चले पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
इसके बाद बारी आई कांग्रेस की। कांग्रेस में हरक की वापसी का सबसे बड़ा कोई विरोधी पिछले कुछ सालों में कोई रहा तो वो हरीश रावत ही हैं। 2016 में जिस हरक ने हरीश की सरकार गिराने का काम किया, उस हरक को हरीश ने कांग्रेस जॉइन कराने के लिए ऐसा इंतजार कराया कि हरक की पूरी सियासत ही दावं पर लग गयी। पूरे एक हफ्ते तक हरीश की हां का इंतजार करने के बाद ही कांग्रेस हरक को लेने के लिए राजी हुए।
बहरहाल, हरक की बेइज्जती को केवल यहीं तक सीमित नहीं रखा गया बल्कि उनसे लिखित में माफीनामा लिया गया। इसके बाद भी हरक सिंह की कांग्रेस में वो एंट्री नहीं हो पाई जिसकी वे तलाश में थे।
हरीश ने आज हरक को कांग्रेस में ही दोयम दर्जे का नेता बनाकर छोड़ दिया। यहां तक कि उन्हें चुनाव लड़ाने के लायक तक कांग्रेस ने नहीं समझा। केवल उनकी बहू को टिकट देकर हरक को किनारे कर दिया गया है। कांग्रेस संगठन में भी उनका अब तक ऐसा इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ है जिससे लगे कि उनकी कांग्रेस में पूछ हो रही है।
कुल मिलाकर भाजपा कांग्रेस ने मिलकर हरक की राजनीति को न केवल जनता के सामने एक्सपोज़ कर दिया बल्कि उन्हें इधर खाई उधर कुवां वाली स्थिति में ला दिया है। हरक का भविष्य भी अब धुंधलके में है।