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यमुनोत्री विधानसभा में मां गंगा ही दिलवाएगी जीत
-यमुनोत्री विधानसभा का मिजाज, क्रमबद्ध तरीके से गंगा यमुना घाटी के प्रत्याशी को मिलती रही है जीत
-यमुना घाटी से मौजूदा विधायक का तालुक्क, जीत दोहराने के लिए भाजपा को चुनना होगा गंगा घाटी का प्रत्याशी।

देहरादून। भारतीय जनता पार्टी ने राज्य गठन के बाद 2017 में पहली बार यमुनोत्री विधानसभा सीट जीती थी, कांग्रेस से विधायक रहे केदार सिंह रावत ने विधानसभा चुनाव के दौरान ही भाजपा का दामन थामकर मोदी लहर में यमुनोत्री विधानसभा भाजपा को दिलवाई। लेकिन, अब भाजपा के लिए सत्ता विरोधी लहर और गंगा यमुना घाटी में बंटी इस सीट पर जीत को दोहराना काफी मुश्किल लग रहा है। लेकिन, हार की तमाम संभावनाओं के बीच गंगा यमुना घाटी का मिथक भाजपा को यमुनोत्री सीट पर अपनी जीत दोहराने का मौका दे सकती है।
वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में यमुना घाटी से कांग्रेस के टिकट पर केदार सिंह रावत चुनावी मैदान में थे तो गंगा घाटी से प्रीतम सिंह पंवार यूकेडी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे, मतदाताओं के लिहाज से यमुना घाटी से बड़ी गंगा घाटी के वोटों के बूते पर प्रीतम सिंह पंवार ने अपनी जीत दर्ज की। साल 2007 दूसरे विधानसभा चुनाव में यमुना घाटी से संबंध रखने वाले केदार सिंह रावत ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की ।तो साल 2012 में फिर से गंगा घाटी से संबंध रखने वाले प्रीतम सिंह पंवार यूकेडी के टिकट पर कांग्रेस के विधायक केदार सिंह रावत को हराकर विधानसभा पहुंचे। तो 2017 में कांग्रेस छोड़ भाजपा के साथ शामिल हुए केदार सिंह रावत ने कांग्रेस के संजय डोभाल को हराकर एक बार गंगा घाटी एक बार यमुना घाटी वाला मिथक बनाए रखा।
सो, इस मिथक पर गौर करे तो 2022 में गंगा घाटी से प्रत्याशी के हिस्से जीत आनी तय मानी जा रही है। इसके पीछे सिर्फ मिथक ही नहीं बल्कि क्षेत्र की राजनीतिक उपेक्षा की भी बड़ी भूमिका है। असल में जब भी गंगा घाटी से प्रत्याशी की विजयी हुई है यमुना घाटी ने खुद को उन पांच सालों के कार्यकाल में उपेक्षित पाया है जबकि गंगा घाटी की अपेक्षाओं पर उक्त विधायक खरा नहीं उतर सका। लिहाजा, यमुना घाटी में वोटों का धु्रवीकरण हो जाता है और अगले चुनाव में यमुना घाटी से प्रत्याशी की जीत होती है। वहीं, अगर यमुना घाटी से विधायक प्रत्याशी चुनाव जीत जाता है तो गंगा घाटी खुद को उपेक्षित पाती है तो यमुना घाटी में सत्ता विरोधी लहर चरम पर होती है लिहाजा अगले चुनाव में गंगा घाटी के वोट एकमुश्त अपने क्षेत्र के प्रत्याशी को जाते हैं। क्षेत्रवाद और गंगा यमुना घाटी यमुनोत्री विधानसभा सीट पर प्रत्याशी की जीत व हार तय करती है।
2017 में विधायक बने केदार सिंह रावत के सामने 2022 में सत्ता विरोधी लहर के साथ ही यमुना घाटी में पनप रहा असंतोष भी बड़ी चुनौती बन रहा है। यमुना घाटी में ही भाजपा के टिकट के लिए चार दावेदारी मजबूती से दावा ठोक रहे हैं तो कांग्रेस के प्रत्याशी रहे संजय डोभाल जो 2017 के चुनाव में बेहद कम मतों से चूक गये थे वह भी यमुना घाटी से आते हैं तो वर्तमान जिलापंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण व पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जशोदा राणा भी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी हैं यह दोनों भी यमुना घाटी से ही संबंध रखते है। इस लिहाज से देखे तो यमुना घाटी में करीब आधा दर्जन दावेदार हैं विधानसभा चुनाव के लिए ऐसे में वोटों का बंटना भी तय है जबकि गंगा घाटी के सामने फिलहाल कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के पास सत्ता विरोधी लहर से पार पाने और यमुनोत्री विधानसभा में अपनी जीत दोहराने के लिए गंगा घाटी से प्रत्याशी चुनने का बेहतर विकल्प है। गंगा घाटी में भाजपा के पास कई दिग्गज नेता हैं। ऐसे में पार्टी अगर 2022 में यमुना घाटी की बजाए प्रत्याशी को टिकट देने में गंगा घाटी को तहरीज देती है तो भाजपा के लिए यमुनोत्री सीट पर अपनी जीत दोहराना बेहद आसान हो जाएगा।

गंगा घाटी में मजबूत प्रत्याशी –
रामसुंदर नौटियाल – भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रामसुंदर नौटियाल ने पत्रकारिता में चार दशक का समय बिताया है और छात्र जीवन से संघ व भाजपा के संपर्क में आ गये थे। संगठन के प्रति समर्पण व क्षेत्र में मजबूत छवि के बूते त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री काल में राज्यमंत्री का दर्जा मिला। भाजपा संगठन में विभिन्न महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई। क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर मुखर रहें, यमुनोत्री विधानसभा के सर्वाधिक मतदाताओं वाले क्षेत्र से संबंध रखते हैं। साफ व स्वच्छ छवि।

विमला नौटियाल – पूर्व में भाजपा प्रत्याशी रही हैं लेकिन बुरी तरह से चुनाव हार गई थी। जिला पंचायत सदस्य रही, अध्यक्ष पद की दावेदार रही लेकिन चुनाव हार गई। फिलहाल सक्रिय राजनीति से दूरी।

लक्ष्मण सिंह भंडारी – सरकारी सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में प्रवेश, क्षेत्र की समस्याओं को लेकर मुखर, जिला पंचायत सदस्य रहे हैं, क्षेत्र में प्रभाव सीमित।

यमुना घाटी से दावेदार –
केदार सिंह रावत – वर्तमान भाजपा से विधायक, इससे पूर्व कांग्रेस से विधायक रहे। 2017 विधानसभा चुनाव में नामांकन से पहले एन वक्त पर भाजपा के साथ शामिल हुए। यमुना घाटी में कार्यकर्ताओं के बीच विरोध। संगठन इन्हें फिर से प्रत्याशी बनाने को लेकर अपनी आपत्ति भी दर्ज करवा चुके हैं। माना जा रहा है जिन सिटिंग विधायकों के टिकट कटने हैं उनमें शामिल।

मनवीर चौहान – पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के पीआरओ, वर्तमान में प्रदेश संगठन में मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी। संगठन में मजबूत स्थिति के बावजूद क्षेत्र में कम सक्रियता, कम लोकप्रियता राह का रोड़ा, मुख्यमंत्री व सरकार के नजदीकी का क्षेत्र को कोई फायदा नहीं दिलवा सके लिहाजा इस वजह से लोगों के बीच नाराजगी।

जसोदा राणा – पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर रही। टिकट की दावेदारी कर रही हैं, लेकिन संगठन का साथ नहीं।

By amit