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शांति रावत::: विधायक गोपाल सिंह रावत की राजनीति की चार दशक की साथी


-गंगोत्री विधानसभा से दो बार विधायक रहे गोपाल सिंह रावत की पत्नी ने उनके असमायिक निधन के बाद समर्थकों, कार्यकर्ताओं ग्रामीणों की अपील पर की है टिकट की दावेदारी

-गोपाल सिंह रावत की समृद्ध राजनीतिक विरासत, विकास कार्यों व अपार जनसमर्थन से गंगोत्री में फिर कमल खिला सकती हैं शांति रावत

अमन वर्मा, देहरादून। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से चार महीने जूझने के बाद 23 अप्रैल 2021 को गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत के असमायिक निधन से हर कोई स्तब्ध था। विधायक के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल के चार साल पूरे कर चुके गोपाल सिंह रावत ने गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र में सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन, सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े ढांचागत विकास को लेकर कई ऐतिहासिक कार्य किए। चार सालों तक गंगोत्री विधानसभा की विकास यात्रा निर्वतमान विधायक स्व. गोपाल सिंह रावत के नेतृत्व में चल रही थी, उस विकास यात्रा को आगे बढ़ाने के वायदे के साथ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शांति गोपाल रावत भाजपा से गंगोत्री विधानसभा में टिकट की मजबूत दावेदार हैं। गंगोत्री विधानसभा के मिथकीय किरदार को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी को राज्य में सरकार बनाने के लिए गंगोत्री में कमल खिलाना बेहद जरूरी है, ऐसे में स्व. गोपाल सिंह रावत के विकास कार्यों के बूते और उनके असमायिक निधन से पैदा संवेदना के आधार पर भाजपा को जीत के लिए उनकी धर्मपत्नी शांति रावत को प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतारना ही होगा।
श्रीमती शांति रावत, सेवानिवृत शिक्षिका तो हैं लेकिन कहते हैं कि हर सफल पुरूष के पीछे एक महिला जरूर होती है और इस कहावत को शांति रावत चार दशक तक सार्थक भी करती रहीं। भले ही स्वयं सरकारी सेवा में थी लेकिन पति गोपाल सिंह रावत की चार दशक तक चली राजनीति में उनके लिए सलाहकार तो कई बार गुरू की भूमिका भी निभाई। राजनीति जैसी मुश्किल डगर में जब भी कभी गोपाल सिंह रावत किसी उलझन में फंसते दिखे तो उनकी अर्धांगिनी शांति रावत की सलाह से गोपाल सिंह रावत उस उलझन को पार पा सके। श्रीमती शांति रावत अपने पति गोपाल सिंह रावत के काम काज में दखलअंदाजी तो नहीं देती थी लेकिन यह सुनिश्चित जरूर करती थी उनके पास आस लेकर आया कोई फरियादी खाली हाथ न जाए। इसकी पुष्टि दिवंगत विधायक गोपाल सिंह रावत के कार्यालय में काम करने वाले सहायक भी करते हैं। सरकारी सेवारत रहते हुए सेवानियमावली के तहत उन्होंने पूरी जिम्मेदारी से शिक्षिका होने की जिम्मेदारी तो निभाई तो लेकिन घर के अंदर वह अपनी पति और राजनीति के क्षेत्र में उत्तरकाशी का सबसे बड़े चेहरे गोपाल सिंह रावत का कई बार मार्गदर्शक की जिम्मेदारी भी निभाती थी। बेहद संपन्न मायके से संबंध रखने वाली श्रीमती शांति रावत ने अपने पति गोपाल सिंह रावत को राजनीति में जीतते, हारते हुए देखा, लेकिन उन्हें किसी भी हार से न कभी टूटने दिया न किसी जीत से उन्हें जमीन छोड़ने दिया।
विकास कार्यों पर श्रीमती शांति रावत अपने पति विधायक गोपाल सिंह रावत को कई महत्वपूर्ण सुझाव दिया करती थी। राजनीतिक परिवार था तो घर में कई बड़े राजनीतिज्ञों, संगठन से जुड़े पदाधिकारियों की आवाजाही निरंतर बनी रहती। इस तरह से अपने पति गोपाल सिंह रावत के साथ ही शांति रावत का संवाद भी उनसे लगातार बना रहता।
वर्तमान में भाजपा की ओर से विधायक गोपाल रावत के निधन के बाद दावेदारों की बड़ी फौज खड़ी है। इनमें से ज्यादातर वह हैं जिन्होंने अपनी पार्टी के भारी बहुमत से विजयी रहे दो बार के विधायक गोपाल सिंह रावत को विधायक के तौर पर स्वीकार न करते हुए पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होकर खुद की दावेदारी करते रहे। लेकिन, गोपाल सिंह रावत राजनीति में दुश्मनी निभाने जैसी धारणाओं के प्रबल विरोधी थी लिहाजा उनकी पार्टी में उनके खिलाफ कुप्रचार करने वाले, उनके विधायक रहते हुए अपने प्रचार प्रसार दावेदारी में जुटे नेताओं को वह न टोकते न उनके खिलाफ कभी हाईकमान से शिकायत करते।
तो वहीं, वर्तमान में विधायक पद के दावेदारों में उन लोगों की सूची भी खूब लंबी है जिन्होंने विधायक गोपाल सिंह रावत के बीमार होते हुए अपनी दावेदारी शुरू कर दी थी। एक ओर पूरी गंगोत्री विधानसभा अपने प्रिय विधायक गोपाल सिंह रावत के स्वस्थ्य होने के लिए प्राथनाएं कर रहा था तो वहीं कुछ पार्टी के नेता उनके बीमार होने पर उनके स्वास्थ्य को लेकर कुप्रचार कर खुद को दावेदार बता रहे थे। हालांकि, इनमें से ज्यादातर के हिस्से समर्थन के नाम रोजाना चाय की रेहड़ी पर चाय पीने जुटने वाले चार यार के अलावा कोई नहीं है।
ऐसे में शांति रावत की दावेदारी ने भाजपा को एक मजबूत प्रत्याशी उपलब्ध करवा दिया है। स्व. गोपाल सिंह रावत के विकास कार्यों, उनकी ईमानदार छवि के साथ ही श्रीमती शांति रावत की सामाजिक सक्रियता, अपने पति गोपाल सिंह रावत के चार दशक लंबे राजनीतिक करियर का साथ, समर्थकों के रूप में एक बड़े मतदाता वर्ग का साथ खड़े होना उनका पक्ष मजबूत करता है।

विधायक विधवा को टिकट यानि जीत की गारंटी
पार्टी संगठन से जुड़े लोगों के साथ ही गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र की बड़ी आबादी गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद से ही शांति रावत को भाजपा से टिकट देने के पक्ष में रही है। लोगों की यह अपेक्षा बेजा भी नहीं है। राज्य में कांग्रेस विधायक सुरेंद्र राकेश के कैंसर से निधन के बाद उनकी शिक्षिका पत्नी ममता राकेश से तत्कालीन कांग्रेस सरकार से इस्तीफा दिलवाकर चुनावी मैदान में उतारा था और ममता राकेश ने उपचुनाव के साथ ही 2017 में भीषण मोदी लहर में भी अपनी विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर अपनी जीत दोहराई। 2017 में ही थराली से विधायक मगन लाल शाह के असमायिक निधन पर भाजपा ने उनकी पत्नी मुन्नी देवी को प्रत्याशी घोषित किया। मुन्नी देवी ने भी उपचुनाव आसानी से जीत लिया था। 2019 में राज्य के वित मंत्री व वरिष्ठ विधायक प्रकाश पंत के कैंसर से निधन होने पर भाजपा ने उनकी पत्नी चंद्रा पंत को शिक्षिका की नौकरी से वीआरएस लिवाकर उन्हें प्रत्याशी बनाया तो प्रकाश पंत की मजबूत छवि से चंद्रा पंत भारी मतों से विजयी होकर विधानसभा सदस्य बन गई। ऐसे में आम जन के बीच प्रबल धारणा बनी है कि विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद उनकी पत्नी को टिकट दिया जाना भाजपा के लिए गंगोत्री विधानसभा में जीत की गारंटी बन सकता है। और गंगोत्री विधानसभा के बारे में धारणा तो है कि जिसने गंगोत्री फहत की राज्य में सरकार उस पार्टी की। इस मिथक को ध्यान रखते हुए भाजपा के लिए यह सीट जीतने बेहद जरूरी है। ऐेसे शांति रावत गोपाल सिंह रावत की विरासत, उनकी छवि, विकास कार्यों के बूते और अपार जनसमर्थन के साथ गंगोत्री विधानसभा सीट पर भाजपा के लिए फिर से कमल खिला सकती है।

By amit