देहरादून। उत्तराखंड गठन के बाद से हर सरकार खनन के मामले में विवादों में रही है। सरकारों को कोर्ट से फटकार लगती रही है। खनन से जुड़े राजस्व घाटे को लेकर सरकारें निशाने पर रही हैं। बावजूद इसके मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी की सरकार में ये पहला मौका है जब खनन राजस्व में घाटा नहीं, बल्कि इजाफा हुआ है। खनन को लेकर सरकार के पक्ष में सीधे सुप्रीम कोर्ट से सुप्रीम फैसला हुआ है। इस पूरे घटनाक्रम ने सरकार को पीआईएल के जरिए बदनाम करने वालों के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है। साथ ही पीआईएल के पीछे के असल चेहरे भी बेनकाब हो गए हैं।
हाईकोर्ट में हल्द्वानी निवासी रविशंकर जोशी की ओर से खनन से जुड़े मामले में पीआईएल दाखिल की गई थी। आरोप लगाया गया था कि निजी नाप भूमि में होने वाले खनन की रायल्टी को 460 रुपये प्रति टन से घटा कर 70 रुपये प्रति टन किया गया। रायल्टी में 390 रुपये प्रति टन की कमी कर खनन कारोबारियों को लाभ पहुंचाया गया। 1500 करोड़ से अधिक के राजस्व का नुकसान पहुंचाया गया। इन आरोपों की कलई खुद कोर्ट में खुल गई है।
सरकार की ओर से हाईकोर्ट में दाखिल शपथ पत्र विस्तार से इन आरोपों को आईना दिखाने वाला तथ्यात्मक ब्यौरा दिया गया। बताया गया कि 1500 करोड़ के नुकसान की बजाय 147 करोड़ का लाभ हुआ है। ऐसा औद्योगिक विकास (खनन) अनुभाग एक की अधिसूचना संख्या दिनांक 28 अक्तूबर 2021 के कारण हुआ। इस अधिसूचना को हाईकोर्ट की ओर से 26 सितंबर 2022 को निरस्त किए जाने के बाद जरूर राजस्व प्राप्ति में कमी आई है। इसी के साथ समतलीकरण को जेसीबी के प्रयोग की मंजूरी वर्ष 2021 में अलग से किसी को नहीं दी गई। जो भी मंजूरी रही, वो इससे पहले की ही रही। उत्तराखंड उपखनिज(बालू, बजरी, बोल्डर) चुगान नीति 2016 के बिंदु 23(3) में ही समतलीकरण कार्य को जेसीबी का उपयोग किए जाने का प्रावधान किया गया है।
यहां तक की कोसी, दाबका समेत हरिद्वार और अन्य स्थानों पर रायल्टी की दरों में भी कोई बदलाव नहीं किया गया। खनन अनुभाग एक की अधिसूचना संख्या 842/vll-1/2016/24-ख/2017, दिनांक 19 मई 2016 द्वारा उपखनिज की रॉयल्टी की दर का निर्धारण किया गया। इसमें गौला के लिए रॉयल्टी दर 8.50 रुपये प्रति कुंतल अर्थात 187.50 रुपये प्रति घनमीटर, कोसी, दाबका नदी के लिए रॉयल्टी दर 8.00 प्रति कुंतल अर्थात 176 प्रति घनमीटर, हरिद्वार और अन्य स्थानों को रायल्टी दर सात रुपये प्रति कुंतल अर्थात 154 प्रति घनमीटर निर्धारित है। जो अभी तक लागू हैं। इससे साफ हो गया है कि दरें घटाने का आरोप सिर्फ सरकार को बदनाम करने के लिए लगाया गया।
ऐसे हुआ 147 करोड़ का लाभ
नवंबर 2020 से जून 2021 तक कुल 401.31 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ। दूसरी ओर नवंबर 2021 से जून 2022 तक कुल 548.30 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ। इस तरह सरकारी खजाने को 147 करोड़ राजस्व का लाभ प्राप्त हुआ।
सरकार के फैसले पर इस तरह लगी सुप्रीम मुहर
हाईकोर्ट की ओर से सरकार के फैसले पर लगाई गई रोक के आदेश पर स्टे सुप्रीम कोर्ट ने दिया। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर मुहर लगाई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार प्रदेश में अब भूमिधर किसान अपनी जमीन पर बाढ़ से जमा उपखनिज का उठान कर जमीन को दोबारा कृषि योग्य बना सकेंगे। निकलने वाले खनिज से अपनी जमीन पर मत्स्य पालन के लिए तालाब, वाटर स्टोरेज टैंक का भी निर्माण कर सकेंगे। इसके लिए पर्यावरणीय मंजूरी की भी जरूरत नहीं होगी। प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में की गई पैरवी पर कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्टे कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से पीआईएल के जरिए सरकार को बदनाम करने वालों को करारा झटका लगा है। पहली बार ऐसा हुआ है कि खनन से जुड़े किसी विषय में न सिर्फ राज्य को राजस्व का लाभ मिला है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के फैसले के साथ खड़ा है।
पीआईएल के जरिए सरकार को अस्थिर करने का प्रयास
खनन से जुड़े विषय में पीआईएल के जरिए सरकार को अस्थिर करने का अंदरखाने प्रयास किया जा रहा था। इस पूरे मामले में कई लोगों की चौंकाने वाली भूमिका है। खनन से जुड़े इस विषय को जिस तरह एक चुनिंदा डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रचारित किया गया। देहरादून से लेकर रामनगर तक विशेष इंटरव्यू कराए गए। उससे इस पीआईएल के पीछे की साजिश भी बेनकाब हुई है। खनन से जुड़े विषय को उठा कर मंशा सरकारी राजस्व की चिंता नहीं थी, बल्कि सरकार को अस्थिर कर अपने लिए आपदा में अवसर तलाशने की थी। अंदरखाने की इस हकीकत से उठे इस पर्दे ने कई सियासतदां को भी बेनकाब कर दिया है। अब यही लोग अपनी पार्टी में देहरादून से लेकर दिल्ली तक मुंह छिपाए घुम रहे हैं। ऊपर से सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली क्लीन चिट के बाद सभी को सांप सूंघ गया है।