एक नंदन सिंह बिष्ट की कविता दूसरे नंदन सिंह बिष्ट के लिए
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खुद को ही कंधा देकर आ रहा हूं
मैं ही मेरे ऊपर चित
हाय रे बेरंग
सत्य का सितासित !
मैं ही अपनी चिता को दूँ आग
इसे विराग कहूँ या हतभाग ?!
मैं ही मेरा चित्र—-
मैं ही मेरा मित्र—-
हाय रे जीवन चरित्र! ( — )
अब धर्मराज युधिष्ठिर !
कौन सा पानी पीने-पिलाने?
अपनों को जिलाने फिर?
किस यक्ष प्रश्न का उत्तर दोगे?
क्योंकि आज के बाद
जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य
ये होगा कि
हम सभी ढ़ो रहे हैं खुद की ही लाश
हम सभी खो रहे हैं खुद की ही तलाश
जला रहे हैं अपनी ही आस
अपना ही आकाश
फिर क्यों ओढ़ते हैं वो लिबास और बिस्वास
जो मेरे सरीखे के बनिस्पत
मेरे जैसे को बना देता है खास?
ऊपर-नीचे
मैं नंदन सिंह बिष्ट—
मैं भी नंदन सिंह बिष्ट
(मेरे भ्रातसुलभ नंदन सिंह बिष्ट को नंदन सिंह बिष्ट की ओर से अश्रुसिक्त श्रद्धांजलि )
30 June 2023 doctor nandan singh bisht (आज “विषधर” से “अश्रुधर” )