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देहरादून। विधानसभा में 2000 से लेकर 2022 तक रखे गए कर्मचारियों से जुड़ी जानकारी देने की मांग पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने विधानसभा से की थी। इसके लिए उन्होंने बाकायदा सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया। आरटीआई में मांगी गई सूचना का भी जवाब विधानसभा सचिवालय ने नहीं दिया। प्रीतम सिंह ने कहा कि 2012 से पहले विधानसभा में भर्तियों को लेकर हुए भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए जानकारी नहीं दी जा रही है।
प्रीतम सिंह ने सभी भर्तियों का रिकॉर्ड मांगा था। इसमें भर्तियों के लिए जारी हुए विज्ञापन, परीक्षा, चयन प्रक्रिया का ब्यौरा मांगा गया था। कर्मचारियों की शैक्षणिक योग्यता की जानकारी मांगी गई। राज्य गठन से लेकर 2022 तक हुई भर्तियों को लेकर कैबिनेट और मुख्यमंत्री के स्तर से दी गई मंजूरियों का भी ब्यौरा मांगा। पूर्व नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के आरटीआई आवेदन को विधानसभा सचिवालय ने कोई तवज्जो नहीं दी। उन्हें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। प्रीतम सिंह ने कहा कि जानकारी न देने से साफ हो गया है कि 2012 से पहले कुछ बहुत गड़बड़ हुआ है, जिसे दबाया जा रहा है। उन्होंने इसे एक बड़े भ्रष्टाचार को दबाने का प्रयास बताया।

जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक न करने पर भी सवाल
प्रीतम सिंह ने डीके कोटिया जांच समिति की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक न किए जाने पर भी सवाल उठाए। कहा कि इस समिति की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए स्पीकर ने बड़ी संख्या में कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट को क्यों सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। जबकि साफ है कि जांच समिति ने 2000 से लेकर 2022 तक की सभी भर्तियों को अवैध करार दिया। रिपोर्ट सार्वजनिक न किए जाने से साफ है कि विधानसभा और भी बहुत कुछ छिपा रही है।

निकाले गए कर्मचारियों को भी नहीं दी जा रही सूचनाएं
विधानसभा से निकाले गए कर्मचारियों ने भी आरटीआई में कई जानकारियां मांगी, लेकिन उन्हें भी सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। सूचना अधिकार अधिनियम के तहत विशेष परस्थितियों में 48 घंटे में सूचना देने का नियम है। इसके बाद भी तय समय गुजरने के बावजूद कोई सूचना नहीं दी गई। न ही विधानसभा सचिवालय के अफसर इस विषय पर कुछ स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं।

2012 के बाद वाले कर्मचारियों की हाथों हाथ दी जा रही हैं सूचनाएं
आरटीआई में जानकारी देने के मामले में भी विधानसभा सचिवालय का दोहरा रवैया सामने आ रहा है। 2012 से पहले के कर्मचारियो से जुड़ी सूचनाओं को छुपाया जा रहा है। वहीं 2016, 2020 और 2022 के कर्मचारियों की सूचनाओं को हाथों हाथ लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है। विधानसभा सचिवालय की उपलब्ध की गई इन्हीं सूचनाओं को पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। इस दोहरे रवैये पर विधानसभा सचिवालय के अफसरों और अनुभाग अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।

By amit