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…धराली “आपदा में अवसर” की तलाश में तो नहीं हैं “कर्नल साहब”! तो क्या सूंघ कर बता रहे मलबे में दबे हैं 147 शव! बगैर किसी ऑथेंटिक आधार, इस तरह की सार्वजनिक टिप्पणी “कर्नल” पर कर रही कई सवाल खड़े!

कर्नल साहब, आपने जब केदारनाथ आपदा के बाद मरघट बनी केदार घाटी को संवारने का काम शुरू किया था तो दुनिया भर के हर शख्स ने दिल खोलकर आपकी तारीफ की थी, करोड़ों टन मलबे, अनगिनत लाशों के बीच आपके नेतृत्व में मजदूरों ने केदारनाथ धाम को नया रूप दिया, आपके कुशल नेतृत्व में आपके खास लोगों पर भगवान शंकर की सेवा का फल मां लक्ष्मी की कृपा के रूप में मिला। खैर, जिस तरह का काम था उसमें अगर मां लक्ष्मी की कृपा हुई भी तो भी उसे जायजा ठहराया जा सकता है क्योंकि परिस्थिति बिल्कुल खतरनाक से ज्यादा खतरनाक थी।
आपने एक वीडियो में दावा किया कि धराली आपदा में 147 लोग दबे हैं, हालांकि NDRF तमाम तरह की आधुनिक तकनीक लाया जिससे जमीन के नीचे कई फीट अंदर दबे शवों की लोकेशन पता चल सके लेकिन धराली की आपदा में आए लाखों टन मलबे के नीचे दबी लाशों तक पहुंचने में वह मशीनें भी फेल रही, पर बाबा केदार की कृपादृष्टि आप पर ऐसी कि आपने मलबे को सूंघ कर बता दिया कि मलबे के नीचे 147 शव फंसे हैं, सरकारी रिकॉर्ड से कुछ 70-80 ज्यादा। गजब यह है कि आपदा के पांच महीने बीतने पर कोई ऐसा शख्स सामने नहीं आया जिसने दावा किया हो कि उसका जानने वाला भी लापता है क्या पता मलबे के नीचे दबा हो, शायद वह लोग बिना पहचान के रहे होंगे इसलिए आपके सिवा किसी को पता नहीं चल सका।
आपने धराली आपदा के मूल स्रोत तक का चक्कर लगाया और बताया कि कहां से यह जलजला आया था। आपने केदारनाथ की तर्ज पर धराली में पुनर्निर्माण कार्य चलाने की योजना बनाई, आपको पता था कि यह संभव नहीं होगा क्योंकि जब आपने केदारनाथ को संवारनें का काम लिया था तो केंद्र और राज्य में इतनी कमजोर सरकार थी कि किसी के पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के सामने अपना गुणा गणित भाग कर मान जाती थी, आज थोड़ा मुश्किल है।‌ जो काम होते हैं तंत्र के जरिए होते हैं। कायदे से होने भी चाहिए, सरकार के पास अपना तंत्र है, हजारों कर्मचारियों का समूह है जो विषम परिस्थितियों में जूझने का अच्छा खासा अनुभव रखते हैं, आपदा के दौरान जनसुविधाओं की बहाली को लेकर उन सरकारी कर्मचारियों का काम तो देखा होगा। धराली आपदा के अगले 36 घंटे में कई किमी ध्वस्त बिजली लाइन को दुरुस्त कर विद्युत आपूर्ति बहाल की थी, चौबीसों घंटे काम कर बीआरओ के मजदूरों ने सड़क बहाल की थी, खराब मौसम में भी पायलट राहत सामग्री आपदा प्रभावित इलाकों में पहुंचा रही थी,
इस बीच आप क्या कर रहे थे, केदारनाथ की तर्ज पर धराली में करोड़ों के सुरक्षात्मक कार्य की योजना बनाने लगे थे, स्थानीय लोगों से मुख्यमंत्री पर दबाव बनवा रहे थे कि साहब को धराली भेजो ताकी वह पुनर्निर्माण कार्य के नाम पर फिर एक बार खुद को ब्रांड बना सकें। धराली आपदा में अवसर खोजते हुए आप केदारनाथ 2.0 दोहराकर एक बार फिर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का ख्वाब पालने लगे थे। मुख्यमंत्री ने आपको फ्री हैंड नहीं दिया तो आपकी योजनाओं पर भी मलबा जम गया इसलिए बिना तथ्यों के अब धराली में चले राहत बचाव कार्यों को ही सवालों के घेरे में ला‌ रहे हैं। पूरी दुनिया ने देखा कि धराली में राहत बचाव‌ कार्य किस स्तर पर चले थे, खुद मुख्यमंत्री लगातार ग्राउंड जीरो पर डटे रहे। हां लाखों टन‌ मलबे में दबे शवों को नहीं निकाला जा सका लेकिन यह भी सच है कि फौज को सिर्फ मलबे की चपेट में आए अपने जवानों के वह शव मिले जो भागीरथी नदी में बहकर आए थे। लाखों टन, कई फीट जमे मलबे के नीचे दबी उन लाशों की तलाश उनके परिजनों को भी है जो अपने प्रिय का आखिरी दीदार करना चाहते हैं, जो यकीन दिलाना चाहते हैं खुद को कि जिसके लौटने की उम्मीद अभी भी उनमें बची है वह कभी नहीं लौटेगा। आपने यह कहकर कि लाशें निकाली जा सकती है सरकार पर सवाल नहीं उठाया उन तमाम शोक संतप्त परिवारों से झूठ बोला है।
मुख्यमंत्री से मांग करता है कि अगर कर्नल साहब मलबे में दबे उन‌ शवों को खोजकर उनका सम्मानजनक अंतिम संस्कार करवाने में सक्षम हैं तो तुरंत उन्हें यह काम सौंपा जाए। उनके मुताबिक 147 शव मलबे में दबे हैं,‌ कम से कम 100 शवों को खोज कर उनका सम्मान जनक अंतिम संस्कार किया जाए, इसके लिए यदि प्रति शव की खोज के लिए कर्नल‌साहब को 10 करोड़ रुपए का भुगतान भी करना पड़े तो राज्य सरकार को यह करना चाहिए क्योंकि लोगों की भावनाओं का सवाल है।
हां, कर्नल‌ साहब पहले उन 147 लोगों की पहचान जरूर जाहिर करें जो उनके मुताबिक मलबे में दबे हैं, आपदा में जान गंवाने वाले हर व्यक्ति की जानकारी आम लोगों को होनी चाहिए, हर लापता व्यक्ति के परिजनों को पता होना चाहिए कि जिसके लौटने की उम्मीद लगाए वह बैठे हैं वह लाखों लाख टन मलबे में दबा है।

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By amit