Deharadoon. अंकिता मर्डर केस में बुलडोजर से रिसोर्ट का कुछ हिस्सा गिराने को लेकर सोशल मीडिया पर चीजों को ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे मौके से सारे साक्ष्य मिट गए हों। हालांकि कानून के जानकारों का स्पष्ट कहना है कि क्राइम सीन रिसोर्ट में नहीं है।
ऐसे में रिसोर्ट पर बुलडोजर चलने से केस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। वहीं, इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं स्पष्ट कर चुके हैं कि साक्ष्य सुरक्षित रहें इसलिए रिसोर्ट के कुछ कमरे सील किए गए हैं। यूं भी मुख्यमंत्री खुद इस पूरे मामले की मॉनिटरिंग कर रहे हैं ऐसे में साक्ष्यों से छेड़छाड़ की गुंजायश न्यूनतम है।
अंकिता मर्डर केस जब से मामला रेगुलर पुलिस को ट्रांसफर हुआ है तबसे त्वरित एक्शन हो रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिए हुए हैं अपराधियों को बख्शा नहीं जाए। इस हत्याकांड का ट्रायल भी फास्ट ट्रैक कोर्ट में कराने की तैयारी चल रही है।
इस बीच, सोशल मीडिया पर बुलडोजर से रिसोर्ट के कुछ हिस्से को ध्वस्त किये जाने को लेकर बवाल मचाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि ऐसा करने से मौके पर मौजूद साक्ष्य मिट गए होंगे जबकि क्रिमिनल मामलों के जानकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते। सीनियर लॉयर गौरव शर्मा का कहना है कि रिसोर्ट का कुछ हिस्सा टूटने से केस के साक्ष्यों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। उनका कहना है कि चूंकि क्राइम सीन रिसोर्ट में नहीं है। जहां पर हत्या की साजिश हुई वह भी रिसोर्ट के बाहर है।
आरोपियों की निशानदेही पर ही चीला नहर से बॉडी रिकवर हुई है और उन्होंने हत्या की बात को कबूला भी है। यह अपने आप में बड़ा सबूत है। इसके अलावा पुलिस ने केस ट्रांसफर होने के तत्काल बाद मौके से नमूने जुटाने के साथ ही सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ली हुई हैं। यदि बॉडी नहीं मिलती तब केस कमजोर हो सकता तक। फोन कॉल कर चैट डिटेल से भी साक्ष्य मिल रहे हैं।
Asp सुयाल के मुताबिक पहले ही छान लिया था रिसॉर्ट
ASP कोटद्वार शेखर सुयाल ने बताया कि पुलिस ने रिजार्ट पहले ही छान मारा था। जाँच अधिकारी ने और पुलिस टीम ने 22 सितम्बर को ही पूरे कमरों की विडीओग्राफ़ी की है। ऐसे में बुल्डोजर चलाने या आग लगने से केस पर कोई फर्क नहीं पडेगा क्योंकि घटना नहर पर घटी है।
इस बीच प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अंकिता के शरीर पर चोट के निशान मिले हैं और पानी में डूबने से मौत दिखाई है। संभवत अंकिता के साथ मारपीट की गयी और फिर उसे नहर में धकेल दिया गया। इस मामले में SIT भी गठित हो चुकी है।
Expert opinion
एडवोकेट गौरव शर्मा के मुताबिक अपराध की सूचना मिलने पर थाने का भारसाधक अधिकारी का दायित्व होता है कि वह तत्काल मामले की जानकारी मजिस्ट्रेट को प्रेषित करे तथा अपराध का अवलिम्ब अन्वेषण, मौके से साक्ष्यों के संकलन, अपराधी की पहचान, गिरफ्तारी के लिये स्वयं जाये या फिर अपने अधीनस्थ अधिकारियों को भेजे। ऐसे में साक्ष्य संकलन के बाद अन्वेषण अधिकारी पर ऐसा कोई दायित्व नहीं है कि क्राईम सीन को सुरक्षित रखे। दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 157 में इस बात का उल्लेख है। जो कि अन्वेषण की प्रक्रिया बताती है।
विवेचना की प्रक्रिया गोपनीय होती है तथा विवेचना के दौरान क्या-क्या किया जाना है इसका विवेकाधिकार जांचाधिकारी का होता है। सरकार या फिर बड़े से बड़ा अधिकारी भी विधि अनुसार जांच में हस्तक्षेप नही कर सकता। वर्तमान मामले में तोड़ा गया रिजार्ट वैसे भी क्राईम सीन की परिभाषा में नहीं आता।
