बदल रही सोच, क्या इस बार होगा “सूर्योदय”
Dehradoon. अदालत से बरी होने के बावजूद दो दशक पुराने एक दंश को झेल रहे कैंट से कांग्रेस प्रत्याशी सूर्यकांत धस्माना को लेकर आखिरकार लोगों की सोच में फर्क स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है।
विशेषरूप से बुद्धिजीवी वर्ग में इस बात की स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है कि एक ऐसा जुर्म जिसके लिए अदालत धस्माना को पहले ही बरी कर चुकी है उसका अब कोई औचित्य नहीं रहा। यही वजह है कि कैंट समेत पूरे देहरादून में धस्माना को सबसे उपयुक्त प्रत्याशी के तौर पर चर्चा होने लगी है और लोगों का मानना है कि ऐसे सुयोग्य प्रत्याशी को राज्य विधानसभा का सदस्य बनने का पूरा हक है। यूं भी मेयर चुनाव से लेकर कैंट सीट पर दो बार वे जनता की अदालत में सजा पा चुके हैं। ऐसे में जाने या अंजाने में हुआ एक अपराध जिसमें वे बरी हो चुके हैं। केवल उस मुद्दे को मुद्दा बनाकर एक सुयोग्य प्रत्याशी को राजनीतिक जीवन मे बढ़ने से रोका नहीं जा सकता।
अगर कैंट सीट पर प्रत्याशियों में भी तुलना करें तो जहां भाजपा प्रत्याशी sympathy की हवा पर सवार हैं तो परिवारवाद को बढ़ावा दिए जाने जैसे तमाम आरोप लग रहे हैं। जबकि इस सीट पर भाजपा के पास तमाम सुयोग्य उम्मीदवार थे लेकिन इन सब पर भाजपा ने sympathy और परिवारवाद को ही वरीयता दी।
ऐसे में बाहर से भले भाजपा में सब ठीकठाक दिखाने की कोशिश हो रही है लेकिन दिल से जुड़ाव न दिखना इस बार भाजपा के लिए इस परंपरागत सीट पर मुश्किल पैदा कर रही है। जबकि कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस में सूर्यकांत के अलावा कोई दूसरा उनकी टक्कर में ही नहीं था। ऐसे में इस बार कैंट का यह मुकाबला पूरी तरह से खुला है।