आखिर वही हो रहा है जिसका डर था। युवाओं के आन्दोलन में ऐसी शक्तियां घुसपैठ करती नजर आ रही हैं जिनका नौजवानों के हित से कोई लेना देना नहीं बल्कि वे अपनी ‘पॉलिटिकल रीच’ बढ़ाने के फिराक में हैं। भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे हमारे युवाओं को समझना होगा कि अतिमहत्कांक्षी राजनैतिक ताकतें उन्हें ‘सॉफ्ट टूल’ की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं। छात्रों के आन्दोलन में ‘हमको चाहिए आजादी, छीन कर लेंगे आजादी’ के नारे और नेपाल के ‘जेन जी’ सरीखे ‘उग्र आन्दोलन’ की चेतावनी कहीं न कहीं चिंता का विषय है जो एक गहरी साजिश की ओर इशारा कर रही है। वरना, हमारी सैन्य भूमि व देव भूमि में तो छीन कर लेंगे आजादी से ‘कोदा झंगोरा खाएंगे’ वाला नारा ज्यादा प्रभावी रहा है।
याद करिये ! नेपाल में जेन-जी आंदोलन ने देश की राजनीति को अचानक अस्थिर कर दिया था। राजधानी से लेकर शहर-कस्बों तक युवा सड़कों पर उतर आए थे। सवाल यह उठ रहा था कि क्या इस उग्र आंदोलन के पीछे केवल घरेलू असंतोष है, या फिर देश विरोधी और विदेशी ताकतें इसे हवा दे रही हैं। अब जबकि नेपाल शांति की ओर बढ़ रहा है तो वहां के लोगों को समझ में आ रहा है कि कहीं न कहीं से आन्दोलन को उग्र करने के लिए युवाओं को उकसाया गया था। देश के भीतर हुई सम्मपत्ति की तोड़फोड़, आगजनी व हिंसक घटनाओं से नेपाल को झटके में लाखों करोड़ का नुकसान तो हुआ ही देश तकरीबन 20 साल पीछे भी चला गया। एक तरह से वहां देश का पुनर्निर्माण करने की चुनौती नई सरकार और जनता के सामने आ गई है। यह चुनौती उग्र आन्दोलन की रौ में बहे युवाओं की वजह से उत्पन्न हुई है। वरना, नेपाल की लोकतांत्रिक देश है, जहां एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सरकार को बदलने की पूरी ताकत जनता के हाथ में है हालांकि उसके लिए निश्चित समयावधि का इंतजार करना होता है।
इधर, देहरादून में चल रहा युवाओं के आन्दोलन में भी ऐसी शक्तियां प्रभावी होना चाहती हैं जो हमेशा अराजकता और राजनैतिक अस्थिरता की पक्षधर रही हैं। जनसरोकार और राज्य की प्रगति से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। खासतौर पर उद्वेलित छात्र शक्ति में हर बार उन्हें अपना राजनैतिकक हित दखाई देता है। ऐसी स्थिति में युवा शक्ति को सिर्फ और सिर्फ अपनी ताकत और प्लानिंग पर भरोसा होना चाहिए। अशांति और और उथल पुथल को बढ़ावा देने वाली ताकतों से सतर्क रहना चाहिए। खासतौर पर बार-बार नेपाल की तरह उत्तराखण्ड में भी उग्र आन्दोलन की चेतावनी देने वालों की मंशा को तो उन्हें समझना ही होगा। ध्यान रहे ! अपने परिवेश और संस्कृति से मिजाज खाने वाले नारे ही किसी आन्दोलन को ज्यादा मारक बना सकते हैं। यह हमने अत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में भी देखा है।
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