#तीन_तिगाड़ा_काम_बिगाड़ा
आपके मन में कभी-कभी सवाल आता होगा कि हरीश रावत रोज इस नारे के क्यों दोहरा रहा है। ये नारा एक आईना है जिस आईने में हम पिछले 5 वर्ष रही सरकार के जन विरोधी चेहरे को देखते हैं। हमारी सरकार ने मलिन बस्तियों के समग्र विकास को ध्यान में रखकर मलिन बस्तियों से ही उठकर आगे आये विधायक श्री राजकुमार की अध्यक्षता में एक छोटी सी कमेटी बनाई, जिसमें हमने तिलकराज बेहड़ जी के स्तर के लोगों को भी जोड़ा। इस कमेटी ने राज्य में सभी हिस्सों का दौरा कर एक व्यापक रिपोर्ट सारे मलिन बस्तियों की गणना कर बनाई। जिसको आधार बनाकर हमने 3 कदम तत्काल उठाये।
पहला 35 हजार घर बनाने का एक प्रोजेक्ट जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना को समाहित करते हुए बनाई। इस योजना की खासियत यह थी कि आवास पाने वाले को बहुत कम पैसा लंबी किस्त के रूप में अदा करना पड़ता था। इस परियोजना का शिलान्यास मैंने रुद्रपुर में किया और इसी योजना के तहत एम.डी.डी.ए. को भी हमने कुछ भूमि देकर आवासीय भवन बनाने का दायित्व सौंपा जो उन्होंने निष्ठा से पूरा किया और यह आवासीय भवन निम्न मध्यम वर्ग को ध्यान में रखकर बनाए। दूसरा काम हमने रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का प्रारंभ किया और काम रिस्पना नदी में ब्रह्मपुरी के आस-पास से प्रारंभिक प्रतिरोध के बाद हम लोगों को समझाने में सफल हुए और लोगों ने रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का काम को आगे बढ़ने दिया जो हमारे कार्यकाल तक लगभग रिंग रोड तक पहूँच गया, कुछ किलोमीटर तक ही हम इस काम को आगे बढ़ा पाये, तब तक सरकार में परिवर्तन हो गया। तीसरा काम जो अत्यधिक महत्वपूर्ण है जो हमने मलिन बस्तियों का सांख्यिकीयकरण कर उनको नियमितीकृत किये जाने किए जाने का कानून विधानसभा में पारित करवाया। ताकि उन पर अवैध कब्जेदारी का टैग हट जाए और वो कानून सम्वत तरीके से जहाँ पर वो रह रहे हैं और सरकार की सहमति से उस स्थान पर या उससे कुछ हटकर दूसरे स्थान पर अपना मकान बनाकर उसके मालिक बन सकें। हमारा मानना था कि हम इस तरीके से एक तो राज्य के अंदर आवास हीनता की प्रॉब्लम को हल कर देंगे और रिवरफ्रंट के जरिये भविष्य के लिए नदियों की खोह में अवैध कब्जे को रोक देंगे और वर्तमान समय में कुछ जमीन का मालिकाना हक़ देकर और कुछ जमीनों को निकालकर उसको डेवलप कर हम वैकल्पिक मार्ग भी शहरों के अंदर पा पाएंगे और उसके अलावा जो है उसमें छोटे-छोटे मार्केट, काम्प्लेक्स, पार्क आदि भी डेवलप कर पाएंगे। सपना बढ़ा था मगर कांग्रेस सरकार गई, ये तीनों सोच पूरी तरीके से धराशायी हो गयी। बल्कि भाजपा सरकार तो एक बार मलिन बस्तियों को कोर्ट का नाम लेकर उजाड़ने में तुल गई थी। खैर
प्रतिरोध और साथ-साथ हमारे द्वारा पारित कानून को देखकर भी वो डर गये, क्योंकि जो कानून विधानसभा का पारित था, या तो उसको निरस्त करना पड़ता और जब तक वो निरस्त नहीं होता, तब तक वो कानून प्रभावी माना जाता। कानून के रहते राज्य सरकार मलिन बस्तियों का ध्वस्तीकरण नहीं कर सकती थी। इसीलिये हम कहते हैं,
“तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा,
अब उत्तराखंड में नहीं आएगी, भाजपा दो