आखिर पोस्टल बैलट को लेकर क्यों मची है रार
-सूबे में 24 सीटें ऐसी जहां 2017 के मोदी लहर वाले चुनाव में भी पांच हजार से कम मतों से हार-जीत का फैसला हुआ
-प्रदेश के अब तक के सभी विस चुनाव में पोस्टल मतों का अधिकांश हिस्सा भाजपा के पाले में जाता दिखता है
-वैसे भी कहा जाता है कि पोस्टल बैलट में सर्विस यानी फौजी वोट उसी दल के पक्ष में जाते हैं जिसकी केंद्र सरकार
-कांग्रेस को 2007 विस चुनाव में पांच, 2012 और 2017 में केवल सात-सात सीटों में पोस्टल बैलट में बढ़त
-2007 में बसपा को दो, 2012 में एक में उजपा को तो एक में रालोद को पोस्टल बैलेट में बढ़त मिली
अरविंद शेखर
देहरादून। इस बार पोस्टल बैलट को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनो में किच-किच मची है। कांग्रेस जहां पोस्टल मतों में खेल का इलजाम लगा रही है वहीं भाजपा पोस्टल मतों के पक्ष में है। दरअसल सूबे में 24 सीटें ऐसी हैं जहां 2017 के मोदी लहर वाले चुनाव में भी पांच हजार से कम मतों से हार-जीत का फैसला हुआ था। ऐसे में जीत का दावा करने वाले दोनो दलों में पोस्टल मतों को लेकर खींचा-तानी होनी स्वाभाविक है। पोस्टल बैलट पर सोमवार को भाजपा कांग्रेस की जंग सामने आ गई थी। कांग्रेस तो इन्हें लेकर चुनाव आयोग तक पहुंच गई है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने इलजाम लगाया कि विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों को डाक मतदाताओं (सर्विस मतदाता, सेवारत सैन्य मतदाता, निर्वाचन ड्यूटी में लगे कर्मियों, दिव्यांग, 80 वर्ष से अधिक आयु वर्ग एवं अशक्तजनों) की मतदाता सूचियां उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है। उधर, भाजपा क मीडिया प्रभारी मनवीर रावत व प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा पोस्टल बैलट में कांग्रेस के आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए इसे कांग्रेस की बौखलाहट बताया। उन्होंने कहा कि नतीजे आने से पहले कांग्रेस असहज और घबराई हुई है। निर्वाचन आयोग ने राज्य में निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराया है और दिव्यांग तथा बुजुर्गो के मत के लिए भी बेहतर व्यवस्था की थी,लेकिन कांग्रेस को मीन मेख निकालने की आदत है।
इन बयानों की पीछे की वजह अब तक के पोस्टल बैलट के आंकड़े साफ कर देते हैं। प्रदेश के अब तक के सभी विधानसभा चुनावों को देखें तो पोस्टल मतों का अधिकांश हिस्सा भाजपा के पाले में जाता दिखता है। यानी अगर केवल पोस्टल मतों की गिनती की जाए तो भाजपा हमेशा प्रचंड बहुमत से जीते। अब इसका अर्थ यह माना जाए कि मध्यवर्गीय सवर्ण ,नौकरीपेशा व सैनिक वोटर भाजपा के प्रभाव में रहता है तो बड़ी बात नहीं। ऐसे में लाजिमी है कि भाजपा पोस्टल बैलट के पक्ष में बात करे। वैसे भी कहा जाता है कि पोस्टल बैलट में सर्विस यानी फौजी वोटर को उसी दल के पक्ष में जाते हैं जिसकी केंद्र में सरकार होती है। इस तरह देखा जाए तो कांग्रेस या अन्य दलों को को अधिकांशत मैदानी क्षेत्र में ही अधिक पोस्टल बैलट मिलता है हालांकि यह बहुत नहीं फर्क नहीं डाल रहा होता जबकि पहाड़ की कई सीटों में तो यह निर्णायक तक साबित हो सकता है क्योंकि पहाड़ की अधिकांश सीटों पर हार-जीत का अंतर कम होता है। इस बार पोस्टल बैलेट बहस के केंद्र में इसलिए भी हैं क्योंकि इस बार पहली बार दिव्यांगों, निशक्तजनों व 80 की वय से ऊपर के बुजुर्गों के लिए भी पोस्टल बैलट की व्यवस्था की कई थी। अनुमान है कि इस तरह पिछले विस चुनाव के मुकाबले प्रदेश में कुल मिलाकर पोस्टल बैलट की संख्या काफी बढ़ गई होगी जो कि हार-जीत में असर डालेगा।
बहरहाल प्रदेश के चुनावी इतिहास में पोस्टल बैलट में हार-जीत की बात करें तो प्रदेश के पहले यानी 2002 के विधानसभा चुनाव के आंकड़े तो मौजूद नहीं लेकिन दूसरे यानी 2007 के विस चुनाव में 63 विस सीटों पर भाजपा को सबसे ज्यादा पोस्टल वोट मिले। कांग्रेस को केवल पांच विस क्षेत्रों सितारगंज, पंतनगर-गदरपुर, जसपुर, मुक्तेश्वर और सल्ट में सबसे ज्यादा पोस्टल वोट मिले। दो विस क्षेत्रों मंगलौर व इकबालपुर में बसपा को सबसे ज्यादा वोट मिले यानी 2012 के विस चुनाव में 70 विस में से भाजपा को 61 विस क्षेत्र में सबसे ज्यादा पोस्टल वोट मिले। कांग्रेस को फिर केवल सात विस क्षेत्रों विकासनगर, भगवानपुर, रानीखेत, हल्द्वानी, जसपुर, काशीपुर और सितारगंज में सबसे ज्यादा पोस्टल वोट मिले। मंगलौर में राष्ट्रीय लोकदल तो चकराता में उत्तराखंड जनवादी पार्टी सबसे ज्यादा पोस्टल वोट पाने वाले बनी।
मोदी लहर वाले 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 52634 पोस्टल वोट पड़े। भाजपा को 63 विस क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पोस्टल वोट मिले। जबकि कांग्रेस को आठ पुरोला, लक्सर, कपकोट, रानीखेत, जसपुर, रुद्रपुर और किच्छा में सबसे ज्यादा पोस्टल वोट मिले।