देहरादून। राज्य के मौजूदा सियासी माहौल, वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व और भविष्य के विकल्पों की एक रिपोर्ट ने कलई खोल कर रख दी है। राज्य के हालातों का सटीक आंकलन करती वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश डिमरी की इस रिपोर्ट ने मंत्रियों के दिल्ली दौरे की असल हकीकत बयां कलई खोल कर दी है।
अपने सूबे में इन दिनों फ़ोटो खिंचाई पर कुर्सी कमाई की चर्चा जोरों पर है, गोया मुख्यमंत्री की कुर्सी न हुई बहुत समय से प्रतिस्थानी के रिलीव होने इंतजार करते हुआ कर्मचारी हो गया जो इस मौके शिकायत को लेकर सक्षम प्राधिकारी के पास दौड़ लगा रहा हो।
इस सूबे में भले ही आलोचकों पर सरकार अस्थिर करने के नाम पर राजद्रोह जैसे मुकदमे भी हुए हों लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि सरकार को खतरा आलोचकों से नहीं बल्कि उनके अपने नेताओं से ही रहा है जो कुर्सी की चाहत पाले किसी न किसी बहाने उस वक्त मौजूदा मुख्यमंत्री के खिलाफ गुट बना बना कर चर्चाओं को हवा देते रहे हैं।
प्रश्न ये है कि जब सूबे में आपदा की दस्तक हो, जब सूबे में कांवड़ यात्रा का जोर हो ऐसे में बजाय इन सब विषयों पर संयुक्त रूप से काम करने के बजाय अगर कोई मुख्यमंत्री बनने का सपना पाले हो और कुछ इस फिराक में इकट्ठे हो रहे हों तो यकीन मानिए उनसे किसी जनपक्ष की उम्मीद मत रखियेगा, अच्छा होता कि वे दिल्ली दरबार की दौड़ के बजाय उन इलाकों की दौड़ लगाते जहां लोगों को उनकी जरूरत है।
ज्यादा बेहतर होता कि वे फलां से मिलने की तस्वीरों को वायरल करते हुए यह कहते कि हम इस मुलाकात से सूबे के लिए यह लेकर आये हैं…? हमने फलां इंस्टीट्यूट खोलने का मांग पत्र सौंपा, हमें यह आश्वासन मिला हमने सूबे की आवाम के लिए इन जरूरी मुद्दों पर बात की, लेकिन नहीं यहां तो आपदा से ग्रस्त राज्य के नेता जो फोटोग्राफी कर रहे हैं कि आवाम को संदेश जाए कि अब उनका नम्बर आने ही वाला है।
पिछले पांच सात रोज से हमेशा सुबह उठते ही कोई नया शगूफा छूटता है कि वो फलां से मिले, फिर दूसरे रोज कि अबके वो फलां से मिलकर फलां जगह चल दिये , दूसरी खबर कि अरे वो जो फलां से मिलकर फलां जगह गए हैं वो मामला अलग है असली खिलाड़ी तो कोई और है फलां फलां के नाम पर तो सर्वेक्षण हुआ है आदि आदि।
मेरा सवाल ये कि उत्तराखंड ने पिछले 22 सालों में तमाम मुख्यमंत्री बदलते हुए देख लिए पर हर बदल के बाद आखिर मिला क्या …? मौजूदा मुख्यमंत्री के कार्यकाल में भी खूब आलोचनाएं की और आगे भी करते रहेंगे यह बतौर आवाम हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन पुराने मुख्यमंत्रियों से ज्यादा बेहतर इन्वेस्टर सम्मिट , बातचीत में सधा हुआ बोलना और ज्यादा ऊर्जावान तो मौजूदा मुख्यमंत्री ही हैं ऐसे में जो भी नया आएगा उसमे कौन सा नया सुर्खाब का पंख लगा होगा और उससे सूबे को क्या मिल जाएगा सवाल इस बात का है।
तो हे मुख्यमंत्री की कुर्सी की चाहत पाले नेताओं आप लोग कृपया इस बारे में भी सोचें कि आपके आलाकमान के लिए क्या उत्तराखंड महज प्रयोग की फैक्ट्री है या उनके चयन का स्तर इतना निम्नस्तरीय है कि हर दो साल में उन्हें नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत महसूस होने लगती है अगर ऐसा है तो सूबे के नेतृत्व परिवर्तन से पहले आपके आला कमान में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत है कि जो इस छोटे से सूबे के लिए ऐसा एक अदद नेतृत्व नहीं चुन सका जो पूरे पांच साल बिना किसी नेतृत्व परिवर्तन के काम कर सके …?
सवाल इस सूबे के सत्ता पक्ष के विधायक दलों के माननीय विधायको से भी है कि वे आम चुनावों में खुद को सामने रख आम मतदाता से बेहतर चुनने के लिए कहते हैं लेकिन खुद इतने होनहार हैं कि अपना नेता चुनते वक्त उनकी बुद्धि भ्रमित हो जाती है…? विधायक दल में से एक ढंग का टिकाऊ नेता नहीं चुन पाते या असलियत ये है कि सूबे की आवाम ही ढंग के विधायक नहीं चुन पाती …?
हालांकि हमेशा से ही इस सूबे में इस नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं के लिए मुख्यमंत्रियों के आस पास जो चौकड़ी जमा होती है उसका भी बड़ा हाथ होता है जिससे पार पाना भी एक चुनौती है, वो चौकड़ी सामने बैठे आदमी को जब चाहे अपनी हरकतों से अर्श से फर्श पर लाने का रास्ता तैयार कर दे और यही हुआ है यही हो रहा है, व्यवस्था की आलोचना स्वस्थ्य लोकतंत्र की पहचान है और आलोचकों का लिए दुर्भावना पालना उनके खिलाफ तमाम हथकंडे अपनाना भयग्रस्त सत्ता की पहचान अब किसे क्या चुनना है ये उसके विवेक पर निर्भर करता है।
लेकिन नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा मौजू और हकीकत या अफवाहों का बीच इतना तो तय है कि इसके लिए जिम्मेदार नेता राज्य में अस्थिरता और विकासात्मक प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार हैं, याद रखिये राजनैतिक रूप से अस्थिर राज्यों अथवा देशों सबसे ज्यादा कुप्रभाव उसकी आवाम पर पड़ता है इसलिए अब अगर नेतृत्व परिवर्तन हो तो वह इस मायने में स्वीकार किया जाए कि मौजूदा सत्ता पक्ष का आलाकमान और विधायक मंत्री जो कि इस परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हों वे अपने लिए एक अदद नेता चुनने की तक का तो शऊर नहीं रखते तो आवाम के लिए क्या जो कर सकेंगे…? मतलब सीधे सीधे बताएं कि उनका खुद चयन ही खराब है या तासीर ही खराब है।
फिलवक्त सत्ता पक्ष के वर्तमान विधायकों में से मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बेहतर ही नजर आते हैं बाकी जो लाइन में हैं वे अपने बारे में ऐसा कुछ बताएं जो जानकारी में न हो कि वे क्योंकर ज्यादा बेहतर हैं ..? या आलाकमान ने कौन सा कोहिनूर छांटा है अब इस सूबे के लिए ..?