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उत्तराखंड में शायद ही ऐसा कोई मुख्यमंत्री रहा हो, जो कुर्सी पर बैठा और उसको कुर्सी से गिराने की अफवाहें दूसरे दिन से ही शुरू न हुई हों। एनडी तिवारी के जमाने से लेकर त्रिवेंद्र तक, जितने भी सीएम रहे, उनकी कुर्सी रोज डोलती थी। कई बार तो इस तरह के विघ्नसंतोषी अपने इरादों में कामयाब भी हुए।

अलबत्ता, राज्य की राजनीति में ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठा तो कुर्सी हिलाना तो दूर, किसी ने बीते तीन साल में इस बाबत कोई खुसर पुसर भी नही की। इस बीच, अचानक ही बद्रीनाथ विधानसभा में सत्ताधारी दल की हार के बाद से तमाम तरह के नैरेटिव राज्य में गढ़ने के प्रयास किये जा रहे हैं।

बीते कुछ दिनों में अचानक ही कुछ फोटो के जरिये राज्य के शीर्ष नेतृत्व को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियों का संचार किया जा रहा है। कभी पीएम से मुलाकात की फोटो को वायरल किया जा रहा है, तो कभी तीन माननीयों की संसद भवन के बाहर फोटो सेशन की फोटो वायरल की जा रही है। यही नहीं, राज्यपाल से मुलाकात के फ़ोटो को भी कुछ इसी अंदाज में प्रसारित किया गया।

फोटो के फैलाव का यह सिलसिला न केवल क्रमवार रूप से फैलाया जा रहा है बल्कि, अपने अपने लोगों के जरिये पिछले कुछ दिनों से यह संदेश प्रसारित किए जा रहे हैं कि जल्द राज्य की राजनीति में कुछ बड़ा होने जा रहा। यहां तक भी कहा जा रहा है देखो केदारनाथ के बाद तो सब कुछ बदल जायेगा और यह सब बीते दिनों में एक दो बार नहीं बल्कि रोजाना नियमित रूप से किया जा रहा है ताकि लोगों में भ्रम और अफवाह की स्थिति बनी रही। बकायदा, इस कार्य के लिए रोजाना मीडियाकर्मियों को फोन करने की जिम्मेदारी दी गई है। बहरहाल, आज एक तस्वीर सत्ता के गलियारों से भी बाहर आई, जिसने पिछले कुछ दिनों से जारी वायरल तस्वीरों की हवा निकालकर रख दी है और संदेश स्पष्ट दिया गया कि ‘ऑल इज वेल’ है।

*कुछ यूं झेला छोटे से राज्य ने राजनीतिक अस्थिरता का दौर*

9 नवम्बर 2000 को राज्य के कमान संभालने वाले पहले मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी को महज 11 माह में ही कुर्सी से हटाना पड़ा और 30 अक्टूबर 2001 को भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद वर्ष 2002 में नये राज्य उत्तराखण्ड में पहले विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने कुल 70 विधानसभा सीटों में से 36 पर विजय प्राप्त की। नारायण दत्त तिवारी ने सरकार की कमान संभाली। कई बार राजैनितक अस्थिरता का माहौल पैदा किया गया लेकिन अपने सियासी कौशल के बूते तिवारी पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने में सफल रहे। 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा को 34 और कांग्रेस को 21 सीटें हासिल हुईं। भाजपा ने यूकेडी और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाई। बीसी खण्डूड़ी मुख्यमंत्री बनाए गए। दो साल 3 माह में ही ऐसी परिस्थितियां पैदा की गईं कि उनकी कुर्सी छीनकर रमेश पोखरियाल निशंक को सौंप दी गई। राजनितक अनिश्चितता के बीच निशंक भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब नहीं रहे, उनका कार्यकाल भी सिर्फ 2 साल और 3 माह का रहा। 13 मार्च 2012 को बीसी खण्डूड़ी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में हुए कांटे के मुकाबले में कांग्रेस भाजपा पर इक्कीस साबित हुई। कांग्रेस को 32 तो भाजपा को 31 सीटें प्राप्त हुईं। बसपा, यूकेडी और निर्दलीयों के समर्थन से बनी कांग्रेस की सरकार में विजय बहुगुणा (13 मार्च 2012) मुख्यमंत्री बने।
जैसे ही उनका ढाई वर्ष का कार्यकाल पूरा हुआ सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस हाईकमान को एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा और हरीश रावत (1 फरवरी 2014) सूबे के नए मुख्यमंत्री बनाए गए। लेकिन अपनों ने ही हरीश को कुर्सी से हटाने की व्यवस्था कर दी। संवैधानिक परिस्थितियां ऐसी बन गईं कि एक नहीं दो बार (27 मार्च 2016 से 21 अप्रैल 2016 और फिर 22 अप्रैल 2016 से 11 मई 2016) राज्य को राष्ट्रपति शासन भी झेलना पड़ा। दो बार राष्ट्रपति शासन के बीच हरीश रावत को सिर्फ एक दिन का मुख्यमंत्री बनने का मौका भी मिला। हालांकि हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 11 मई 2016 के बाद उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर प्राप्त हुआ। विधानसभा के चौथे चुनाव में वर्ष 2017 में भाजपा बहुमत यानि 57 सीटों के साथ सरकार बनाने में सफल रही। कांग्रेस महज 11 पर सिमट गई। प्रचण्ड बहुमत की सरकार में मुख्यमंत्री बने त्रिवेन्द्र सिंह रावत चौथे साल में ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए और उनके बाद पहले तीरथ सिंह रावत (10 मार्च 2021) और फिर पुष्कर सिंह धामी (4 जुलाई 2021) को एक बाद एक मुख्यमंत्री बनाया गया। तीरथ को तो सिर्फ 116 दिन का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिल पाया।

By amit