Bjp को खटकने वाले हरदा का फर्श से अर्श तक वाला सफर, जानिए, एक दिन के सीएम भी रहे! आज भी उत्तराखंड की राजनीति इनके बिना अधूरी
देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति की बात हो और हरदा का नाम न आये भला ये संभव है।
हरीश रावत एक ऐसा नाम हैं जिनके बगैर उत्तराखंड की राजनीति अधूरी है और हमेशा से यह नाम उत्तराखंड की राजनीति के केंद्र में रहा है और रहेगा।
हरीश रावत का कद उत्तराखंड में इतना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विपक्ष के निशाने पर कांग्रेस से ज्यादा हरीश रावत रहते हैं। विपक्ष जितनी जोर से हरदा को धक्का मारकर पीछे धकेलती है उतनी ही मजबूती से एक बार फिर से वे आगे कर यह साबित करते हैं कि आखिर क्यों वे उत्तराखंड की राजनीति में सबसे अहम किरदार हैं।
वे एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो प्रतिद्वंद्वियों से मात खाने के बाद और मजबूत बनकर उभरते हैं। उनकी इसी ताकत के सब कायल हैं। 2017 का चुनाव इसका प्रमाण है। 9 विधायक और दो दो सीट से हारने वाले हरीश आज फिर टॉप पर हैं।
राजनीति का उनका यह सफर आसान नहीं था। काफी कठिनाइयों के बाद हरीश रावत ने खुद को इस मुकाम तक पहुंचाया है।
बता दें कि 1973 में हरदा कांग्रेस के जिला यूथ इकाई के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने। ब्लॉक प्रमुख से अपने चुनावी राजनीति करियर की शुरुआत करने वाले हरदा 2012 में मुख्यमंत्री बने। 27 अप्रैल 1948 को अल्मोड़ा में जन्मे हरीश रावत ने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की है।
हरदा को जनता की नब्ज टटोलनी आती है। उनके नाम एक अनोखा रिकॉर्ड भी रहा है। उनके नाम 1 दिन का मुख्यमंत्री रहने का अनोका रिकॉर्ड भी है। 2016 में उत्तराखंड में तहलका मच गया था। कांग्रेस में जमकर तोड़फोड़ हुई। जिसके बाद उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
25 दिन के बाद राष्ट्रपति शासन खत्म हुआ और 21 अप्रैल 2016 को एक बार फिर रावत 1 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। हरीश रावत 15वीं लोकसभा में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री भी रह चुके हैं