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देहरादून। उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला पर मंगलवार को पूरे राज्य में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाई जा रही है। हरेला उत्तराखंड का सिर्फ पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा पर्व ही नहीं है, बल्कि ये पर्व उत्तराखंड को एक सूत्र में बांध कर रखने का भी पर्व है। एक समय तक सिर्फ उत्तराखंड के एक हिस्से कुमाऊं में ही मनाया जाने वाला हरेला पर्व अब पूरे राज्य का पर्व है। राज्य की सरहदों से पार जाकर भी अब लोग इस पर्व को मना रहे हैं। जहां ये पर्व सिर्फ कुमाऊं नहीं, बल्कि समूचे उत्तराखंड की पहचान है।
यही वो पर्व है, जो इस राज्य के बीच दो मंडलों के बीच सरहदों के फासले को खत्म करता है। पूरे राज्य को एक मजबूत बंधन में बांध कर रखता है। ये पर्व उन लोगों की भी बुद्धि शुद्धि करता है, जो इस राज्य को अपने निजी स्वार्थों, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बैकडोर से पाने को क्षेत्रवाद, जातिवाद का जहर अवाम के बीच घोलते हैं। ये लोग कभी भगवान भोलेनाथ को ही केदारनाथ धाम, आदि कैलाश और जागेश्वर धाम के बीच बांटने का कुत्सित और घृणित प्रयास करते हैं। अपनी बेहद निचली और आत्मकेंद्रित सोच के कारण उत्तराखंड राज्य की विकसित होती, चमकती ब्रांड वैल्यू को नुकसान पहुंचाने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते।
कभी जोशीमठ भूधंसाव, तो कभी सिल्कयारा, तो कभी रैणी हादसा, तो कभी हल्द्वानी वनभूलपुरा जैसे मामलों को राष्ट्रीय स्तर पर उछाल कर उत्तराखंड की ब्रांड इमेज को खराब करते हैं। कभी उत्तराखंड की ब्रेड बटर मानी जाने वाली चार धाम यात्रा को बदनाम करने का प्रयास करते हैं। कभी चार यात्रा पंजीकरण का विवाद खड़ा करते हैं, तो कभी चारों धामों में उमड़ी भीड़ को व्यवस्थित किए जाने वाले प्रयासों को अपने षडयंत्रों के जरिए नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। कभी चार धाम कारोबारियों और यात्रा से जुड़े सभी स्टेक होल्डर्स के बीच केदारखंड और मानसखंड का भेद बढ़ाते हैं। आम जन के बीच बेनकाब हो चुके इन लोगों को हरेला पर्व यही संदेश देता है कि अपनी इस छोटी और ओछी सोच के बलबूते वे कभी बढ़े नहीं बन सकेंगे। वे कभी इस अवाम का दिल नहीं जीत सकेंगे। हरेला पर्व बताता है कि वही पौधा आगे चल कर वृक्ष बनता है, जो अपनी जड़ों से जुड़ा होता है। जड़ों को छोड़ हवा हवाई रवैया अपनाने वालों के लिए इस देवभूमि में कोई स्थान नहीं है। इस देवभूमि में वही पनप सकेगा, जो इस राज्य को हरेला पर्व की तरह एक धागे में पिरो कर चलेगा। जातिवाद, क्षेत्रवाद का विश फैलाने वाले सर्पों को ये देवभूमि कभी बर्दाश्त नहीं करती। जो भी अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए वैमनस्य बढ़ाने वाली सोच के साथ आगे बढ़ेगा, वो इस राज्य में कभी सुकून से नहीं हर सकेगा। हरेला पर्व इसी छोटी सोच वालों को बड़ा मन रखने का संदेश देता है।

By amit

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