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उत्तराखंड में नकल के हमाम में हाकम ही हाकम, एनडी तिवारी के 2002 से शुरू हुए नकल माफिया पर 2021 में धामी सरकार में ही जाकर लगी रोक, पहली बार जेल की सलाखों के पीछे भेजे गए नकल माफिया, हाकम, आरबीएस रावत समेत कुल 100 को हुई थी जेल, 26 हजार को मिली पारदर्शी नौकरी

देहरादून। उत्तराखंड में भर्ती परीक्षाओं में धांधली का इतिहास उसके गठन के समय से ही जुड़ा हुआ है। एनडी तिवारी जैसे सीएम तक इस नकल गैंग, भर्ती माफिया गैंग से नहीं बच पाए। या कहें की इसकी शुरुआत ही उनके समय से शुरू हुई। दरोगा भर्ती कांड शायद नई पीढ़ी को याद नहीं होगा, लेकिन सभी भूल गए हों, ऐसा भी नहीं है। कैसे रुड़की आईआईटी से चयनित युवाओं की लिस्ट पुलिस मुख्यालय में बदली गई और लिखित परीक्षा में बेहतर नंबर वालों को इंटरव्यू में फेल कर दिया गया। कई युवा तो 10 साल तक कोर्ट कचहरी के चक्कर ही काटते रह गए। कुछ ने लंबी लड़ाई के बाद जरूर अपनी नौकरी पाई। कई हाकम सिंह आज भी थाने चौकियों में आज भी जमे हैं। न सिर्फ दरोगा भर्ती, बल्कि पटवारी भर्ती में तो तत्कालीन हाकम सिंह ने व्यवस्था, मानकों, नियमों के परखच्चे ही उड़ा दिए थे। आवेदन पत्र तक न भरने वालों को सीधे नियुक्ति पत्र तक थमा दिए गए थे। यहां न परचा लीक हुआ और न ही कोई धांधली, बल्कि सीधे नौकरी का ही अपहरण कर लिया गया। इसी दौर में मंडी परिषद की भर्तियों में भी बेरोजगार ठगे गए। सड़कों पर उतर आवाज भी उठाई गई, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बन कर रह गई।
2005 में ही पेयजल निगम की पंजाब यूनिवर्सिटी से कराई गई जेई और एई भर्ती परीक्षा में भी जमकर धांधली हुई। बिहार के एक ही कालेज के तमाम छात्र करिश्माई तरीके से पास हुए। उत्तराखंड के अनुसूचित जाति, ओबीसी के आरक्षित पदों पर आंख बंद कर यूपी, बिहार, दिल्ली के लोगों को नौकरी दे दी गई। 2007 में फिर दोबारा पंजाब यूनिवर्सिटी से ही जेई ऐई की भर्ती परीक्षा कराई गई। इस बार और भी गजब खेल हुआ। इस परीक्षा में भी जल निगम के कई ऐेसे इंजीनियरों ने आवेदन किया, जो 2005 में चयनित हो चुके थे। एक ही पद पर चयनित होने और नौकरी करने के बावजूद ये बहादुर फिर 2007 में परीक्षा में बैठे। इस बार ये लोग फेल हो गए और उनके कालेज के वो लोग पास हो गए, जो 2005 की परीक्षा में 20 नंबर भी नहीं ला पाए थे। ऐसे में नौकरी करने वालों और पहली परीक्षा के टॉपरों को दोबारा पासिंग नंबर तक न लाना सवाल खड़े करता रहा है। आज भी जल निगम में अंदरखाने ये किस्सा हर किसी की जुबान पर है।
उस दौर में राज्य में पंतनगर विश्वविद्यालय, प्राविधिक शिक्षा परिषद, पंजाब यूनिवर्सिटी से कराई गई हर भर्ती में धांधली हुई। यहां तक की लोक सेवा आयोग की भर्तियों पर भी विवाद उठते रहे। ऊर्जा के निगमों में तो अधिकतर भर्ती नोएडा गाजियाबाद के अजीबोगरीब संस्थानों से हुई। यहां 2002 से लेकर 2010 तक हर भर्ती विवादों में रही। लेकिन कभी न कोई कार्रवाई हुई। न कोई हाकम सिंह धरा गया और न कोई जांच बैठी। न कोई कानून बना। 2015 में कांग्रेस सरकार ने जब उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन किया और उसके अध्यक्ष का जिम्मा पाक साफ माने जाने वाले तत्कालीन आईएफएस अफसर प्रमुख वन संरक्षक आरबीएस रावत को दिया गया। लगा कि अब युवाओं के हितों को संरक्षित, सुरक्षित करने का पक्का इंतजाम हो गया। लेकिन आने वाले वर्षों में इस यूकेएसएसएससी में ऐसे ऐसे खेल, घोटाले हुए कि पाक साफ माने जाने वाले आरबीएस रावत की पाक साफ छवि की धज्जियां ही उड़ गई। यहां से जिस हाकम राज के साम्राज्य का उदय हुआ, वो युवाओं के सपनों को ध्वस्त करता चला गया। 2015 की सहायक लेखाकार भर्ती हो या 2016 की ग्राम विकास अधिकारी भर्ती, हर जगह जमकर धांधली हुई।
हर परीक्षा में जमकर खेल हुए। सूचनाएं ऐसी ऐसी आई कि जो ओएमआर शीट डबल लॉक के सख्त पहरे में रहनी चाहिए थी, वो आयोग के कर्णधारों के बैग में पटल दर पटल घूमती चली गईं। जिस हाकम को उसी समय जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए था, उल्टा उन पर दर्ज मुकदमे वापस होते चले गए, जिस पुलिस पर उन्हें जेल भेजना का जिम्मा होना चाहिए था, वो हाकम को क्लीन चिट देने में एफआर लगाने में जुट गई। इससे बेलगाम होकर हाकम के हौसले बुलंद होते चले गए। और वो युवाओं के हितों पर डाका डालता चला गया। हाकम की सिस्टम में गहरी पैठ किस स्तर तक थी, वो राज्य के हर शख्स को मालूम है। क्या उसका मोरी स्थित रिजॉर्ट और सत्ता के गलियारे, हर जगह हाकम का जलवा जलाल कायम रहा।
पहली बार 2021 और 2022 में इस नकल माफिया गैंग पर शिकंजा कसा गया। न सिर्फ हाकम सिंह अपने साथियों के साथ जेल भेजा गया। बल्कि यूकेएसएसएससी अध्यक्ष आरबीएस रावत, कन्याल, पोखरिया तक जेल भेजे गए। पूरे नकल गैंग के करीब 100 के करीब लोग सलाखों के पीछे गए। उत्तराखंड में पहली बार सख्त नकल कानून भी बनाया गया। उसके बाद हुई तमाम भर्तियां पहले के मुकाबले कमोबेश सही बताई गईं। भर्ती परीक्षा के सामने आए नतीजों में आम लोगों को मिलने वाली नौकरियों से युवाओं में आस जगने लगी। टिहरी घनसाली के गरीब धर्मांनंद हों(जिनकी दो बेटियां टीचर बनीं) या रुद्रप्रयाग के विक्रम सिंह(जिनके दो बेटे जल संस्थान और सिंचाई विभाग में जेई बने), या पौड़ी की नूतन जिन्होंने तीन परीक्षाएं पास की। हरिद्वार के अंशुल, उत्तरकाशी के शंकर भंडारी, टिहरी के हरिओम, सभी अपनी मेहनत से नौकरी पाने में कामयाब रहे। युवा सड़कों पर जिंदाबाद मुर्दाबाद करने की बजाय अपनी तैयारी में जुटने लगे थे। इन युवाओं का ये विश्वास बढ़ ही रहा था कि इस बीच हाकम रूपी एक खालिद और सामने आ गया और एकबार फिर युवाओं का विश्वास डगमगाया गया।
इस डगमगाए विश्वास को बनाने को फिर गिरफ्तारियों, निलंबन, जांच का 2021, 2022 वाला दौर शुरू हुआ है। युवा इस दायरे को और व्यापक करने की मांग पर अड़े हैं। सीबीआई से कम पर कुछ भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। युवाओं को उत्तराखंड के इस भर्ती घोटालों के लंबे इतिहास को ध्यान में रखते हुए समझना चाहिए कि जो उनके हितैषी बनने की कोशिश कर रहे हैं, उनमें कोई भी दूध का धुला नहीं है। ऐसे में परेड ग्राउंड में बैठे बेरोजगार युवाओं को किसी भी मुगालते में नहीं आना चाहिए और न ही अपने मंच का इस्तेमाल किसी को भी अपनी राजनीति चमकाने को देना चाहिए। बेरोजगारों ने पहले भी अपनी ताकत की बदौलत हुक्मरानों से अपनी मांगों को मनवाया है। ऐसे में उन्हें अपनी ताकत पर भरोसा रखना चाहिए और सही दिशा में अपनी ताकत को लगाना चाहिए। धरना स्थल पर बात सिर्फ बेरोजगारों के हितों की होनी चाहिए। किसी को भी टुकड़े टुकड़े, आजादी आजादी का माहौल बना कर युवाओं के सही दिशा में जा रहे आंदोलन को भटकाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। बेरोजगारों के मंच पर बात नकल, धांधली पर केंद्रित रहनी चाहिए, न कि किसी को हिंदू धर्म पर अपना अधकचरा ज्ञान पेलने की इजाजत देनी चाहिए। न ही किसी को सत्ता सरकारों से अपना निजी स्कोर सेट करने की। देश के आंदोलन में जब भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस ने तमाम बड़े मंचों के होने के बावजूद अपनी एक अलग लंबी लकीर खींची और अंग्रेजों की सत्ता को भीतर तक हिला दिया तो इस बार भी बेरोजगार युवाओं को अपने मंच को राष्ट्रविरोधी ताकतों से दूर रखना होगा। ताकि उनके आंदोलन की दिशा भटकाव पैदा न हो और युवाओं की परेड ग्राउंड से उठी ये आवाज नौजवानों का भविष्य सुरक्षित बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो।
युवाओं को समझना होगा कि पहली बार किसी सरकार ने उनके हितों का ख्याल रखा है। पहली बार किसी सीएम ने नकल माफिया को जड़ से उखाड़ फेंकने का काम किया है। पहली बार नकल के खिलाफ सख्त कानून बना है। ऐसे में यदि इस बार भी अराजकता फैलाने वालों के जाल में युवा भटके तो फिर उनकी कभी कोई सुनवाई होने से रही।

By amit