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गंगोत्री विधानसभा: फूंके हुए कारतूस के भरोसे 2022 की जंग जीतने की तैयारी में भाजपा

 

-मिथकीय सीट गंगोत्री विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी से दर्जन भर प्रत्याशी कर रहे दावेदारी, ज्यादातर दावेदारों को जनता पहले ही कर चुकी है रिजेक्ट

ब्यूरो, देहरादून। राज्य की राजनीति में गंगोत्री विधानसभा का मिथक उत्तर प्रदेश के दौर से ही है। इस सीट के बारे में माना जाता है कि जिस पार्टी का प्रत्याशी इस सीट से विजयी रहा उस राजनीतिक दल की सरकार राज्य में बननी तय मानी जाती है। लिहाजा, कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के लिए यह मिथकीय सीट जीतना राज्य में सरकार बनाने के लिए जरूरी हो जाता है। राज्य गठन के बाद अब तक बारी बारी से यह सीट कांग्रेस और भाजपा के हिस्से आई है। 2022 में जहां भाजपा राज्य में 60 से अधिक सीटे जीतने का लक्ष्य लेकर चुनावी ताल ठोंक चुकी हैं लेकिन गंगोत्री विधानसभा में भाजपा का चेहरा कौन होगा इस पर खूब माथापच्ची हो रही है। यहां भाजपा से टिकट की टकटकी लगाए दर्जन भर से ज्यादा चेहरे हैं, लेकिन ज्यादातर चेहरे पहले ही जनता द्वारा नकारे जा चुके हैं।
गंगोत्री विधानसभा में सिटिंग विधायक गोपाल सिंह रावत का निधन बीते साल अप्रैल महीने में कैंसर से जूझते हुए हो गया था। संवैधानिक नियमों के मुताबिक अगस्त महीने तक चुनाव हो जाने थे लेकिन कोरोना संकट के चलते चुनाव आयोग ने उपचुनाव करने का जोखिम नहीं लिया। लेकिन, उसी दौर से खाली सीट पर विधायक बनने के लिए ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली स्थितियां पैदा हो गई। आलम यह है कि रिकार्ड मतों से जीती गई भाजपा की इस सीट पर भाजपा की ओर से दर्जन भर चेहरे दावेदारी कर रहे हैं। दावेदारी करने वालों में कुछ पहले भी इस सीट पर क्षेत्रवाद, जातिवाद जैसे तिकड़म के दम पर भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर किस्मत आजमाने आए लेकिन जनता द्वारा सिरे से नकारे गये। तो कई खुद को सबसे मजबूत बताने वाले प्रत्याशी ऐसे भी हैं जो त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में तक जमानत बचाने में नाकाम रहे हैं।
ऐसे में भाजपा के सामने गंगोत्री सीट को बचाने की बड़ी चुनौती सामने खड़ी हो गई है। भाजपा का यहां सीधा मुकाबला 2002 व 2012 में विधायक चुने गये विजयपाल सजवाण से हैं। यूं तो 2002 से गंगोत्री विधानसभा में कांग्रेस माने विजयपाल ही है लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ही पार्टी के एक धड़े ने विजयपाल सजवाण की दावेदारी का विरोध करना भी शुरू कर दिया है। लेकिन, पार्टी का बड़ा पक्ष विजयपाल सजवाण के पक्ष में खड़ा है। ऐसे में भाजपा के लिए 2022 के विधानसभा चुनाव में विजयपाल सजवाण को पार पाना आसान न होगा। हालांकि, भाजपा के पास गोपाल सिंह रावत के कार्यकाल में हुए सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन, कृषि, उद्यानिकी समेत अन्य क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों की लंबी सूची है तो गोपाल सिंह रावत के निधन से पैदा हुई संवेदना भी है लेकिन यहां पार्टी की ओर से दावेदारी कर रहे ज्यादातर दावेदार गोपाल सिंह रावत के जीते जी उनके विरोधी के तौर पर ही काम करते रहे। गोपाल सिंह रावत के नाम से इन दावेदारों को इतना परहेज है कि अपने पोस्टर बैनरों में तक पूर्व विधायक के फोटो लगाने की जेहमत भी नहीं उठा रहे। ऐसे में गोपाल सिंह रावत के कार्यों और उनकी विरासत को आगे बढ़ाती सिर्फ उनकी पत्नी श्रीमती शांति रावत ही दिख रही हैं। सेवानिवृत शिक्षिका शांति रावत भी 2022 में भाजपा की ओर से टिकट की दावेदारी कर रही हैं।
गंगोत्री जैसी मिथकीय सीट पर भाजपा में ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली स्थिति यू ंतो पार्टी के लिए नई नहीं है लेकिन टिकट तय होने के बाद चूक गये दावेदार हर बार की तरह ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी करने की भी तैयारियों में जुट जाएंगे यह तो तय है।

यह हैं भाजपा से गंगोत्री विधानसभा के दावेदार
सूरतराम नौटियाल – 2002, 2007, 2012, 2017 में पार्टी से टिकट मांग रहे हैं। उम्र 75 पार, 2017 में पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनावी ताल ठोंकी। आखिरी लकड़ी के नाम पर वोट मांगने के बावजूद भी 10 हजार के करीब वोट ही जुटा सके। 2007, 2012 में पार्टी द्वारा नामित प्रत्याशी के विरोध में पार्टी का झंडा डंडा तक जला चुके हैं। फिलहाल, अधिक उम्र और हर विधानसभा चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते टिकट मिलने की संभावनाएं कम। बीते महीने ही पार्टी के निष्कासन का वनवास पूरा कर पार्टी में वापसी हुई।

सुरेश चौहान – 2002 से 2007 तक कांग्रेस के पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण के खासम खास रहे। पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण की छत्रछाया में ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य बने। 2012 में विधायक बनने की तलब जगी तो निर्दलीय ही चुनावी मैदान में कूद पड़े। क्षेत्रवाद के नाम पर गंगा घाटी को एक करने की कोशिश के बावजूद भी 7 हजार वोटों पर सिमटे। कांग्रेस से राह जुदा की, 2017 में भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत के नजदीक आए, पुरानी आदत के अनुसार पार्टी के भीतर तोड़जोड़ में जुट गये। विधायक गोपाल सिंह रावत के असमायिक निधन के बाद दावेदारी ठोकी।

जगमोहन रावत – राज्य गठन के बाद ही किशोरावस्था से ही विधायक बनने के लिए आतुर। 2014 में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में किस्मत आजमाई, गांव में ही क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव हारे, करीब 1000 से भी कम मतदाताओं वाली सीट पर तीसरे नंबर पर रहे। पत्नी दो बार की ब्लॉक प्रमुख। 2002, 2007, 2012, 2017 के विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार प्रसार करते हुए हाईकमान से निलंबन भी झेल चुके हैं।

बुद्धि सिंह पंवार – 2002 में पार्टी की ओर से अधिकृत प्रत्याशी बनाए गए। भाजपा को तीसरे नंबर पर पहुंचाया। 2007 में भाजपा से गोपाल सिंह रावत के विधायक बनने के बाद पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल। कई बार बोल बचन से पार्टी को किया असहज। पार्टी के भीतर ही विपक्ष की भूमिका निभाने से हमेशा हाईकमान की नजरों में रहे।
श्रीमती शांति रावत – निर्वतमान विधायक स्व. गोपाल सिंह रावत की धर्मपत्नी। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज उत्तरकाशी से अध्यापिका के पद से हुई सेवानिवृत। राजनीति में नई। पति स्व. गोपाल सिंह रावत ब्लॉक प्रमुख, दो बार के गंगोत्री से विधायक रहे। दो चुनावों में सिटिंग कांग्रेस विधायक को रेकार्ड मतों से हराया। विधायक की असमायिक निधन से पैदा संवेदना और विधायक के कार्यों के भरोसे ही गंगोत्री से दावेदारी।

विजय बहादुर रावत – विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के तीसरे दिन ही देहरादून पहुंचकर पार्टी नेताओं के सामने दावेदारी जताने के बाद खूब किरकिरी हुई। परिवार में पिता कांग्रेस के नेता रहें तो बड़े भाई यूकेडी से रहे हैं गंगोत्री विधानसभा के प्रत्याशी, वर्तमान में यूकेडी के जिलाध्यक्ष। चुनावी साल में ही दिख रहे सक्रिय।

By amit