निर्दलीय चुनाव, क्षेत्रवाद और जातिवाद पर ही सिमट जाते हैं प्रत्याशी
पंकज कुशवाल, उत्तरकाशी। भाजपा द्वारा प्रत्याशियों की घोषणा के बाद ही नाराज दावेदार निर्दलीय ताल ठोकने का एलान कर चुके हैं। गंगोत्री विधानसभा में पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2017 तक निर्दलीय प्रत्याशियों ने खूब दम ठोक कर चुनाव लड़ने का एलान किया लेकिन गंगोत्री विधानसभा ने निर्दलीय प्रत्याशियों के बजाए कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशियों को ही तवज्जो दी।
गंगोत्री विधानसभा में कांग्रेस भाजपा से बारी बारी से विजयपाल सजवाण व गोपाल सिंह रावत क्षेत्र का विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन, राष्ट्रीय पार्टियों के इन दोनों प्रत्याशियों के सामने निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी खूब चुनौती पेश का दावा किया लेकिन क्षेत्रवाद, जातिवाद पर केंद्रित होकर मुद्दा विहिन होकर चुनावी मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्शायियों को जनता ने भी नकार दिया।
2002 में कम्युनिस्ट पार्टी से कमलाराम नौटियाल सबसे मजबूत दावेदार थे और उनके सामने नगर पालिका अध्यक्ष रहे विजयपाल सजवाण कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में थे। कमला राम नौटियाल का पक्ष बेहद भारी था, कमला राम नौटियाल के साथी रहे चंदन सिंह राणा ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में दांव ठोंक दिया। कमला राम नौटियाल और चंदन सिंह राणा ने लंबा समय कम्युनिस्ट पार्टी में एक साथ काटा था। लेकिन, यहां चंदन सिंह राणा कमला राम नौटियाल के लिए वोट कटाउ साबित हुए और पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण महज 600 के करीब वोटों से जीत गये। 2007 में निर्दलीय तो कोई बड़ा चेहरा मैदान में नहीं था लेकिन 2002 में महज कुछ सौ वोटों से चुनाव हारे कमलाराम नौटियाल चुनावी मैदान में थे। इस बार भाजपा ने गोपाल सिंह रावत को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था। 2002 में तीसरे नंबर पर रही भाजपा गोपाल सिंह रावत को चेहरा बनाकर तत्कालीन कांग्रेसी विधायक विजयपाल सजवाण को 6 हजार के करीब वोटों से हराने में सफल हो सकी थी।
2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी विधायक विजयपाल सजवाण के बेहद खास रहे सुरेश चौहान ने बगावत कर निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोंक दी तो वहीं जिला पूर्ति अधिकारी के पद से रिटायर किशन सिंह पंवार भी चुनावी मैदान में कूद पड़े। दो दो निर्दलीय प्रत्याशियों ने क्षेत्रवाद को खूब भुनाया। सुरेश चौहान को जहां टकनौर और नाल्ड कठूड़ का साथ मिला तो किशन सिंह पंवार ने बाडागड्डी क्षेत्र को एक कर चुनावी ताल ठोंकी।
इन विधानसभा चुनाव में दोनों ही निर्दलीय मिलकर दस हजार वोट के करीब ही जुटा सके जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी विजयपाल सजवाण ने भाजपा के तत्कालीन विधायक गोपाल रावत को सात हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी।
2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से पूर्व विधायक गोपाल सिंह रावत के साथ ही भाजपा सरकार में दर्जाधारी रहे सूरतराम नौटियाल ने भी दावेदारी की। पार्टी ने चुनाव में पूर्व विधायक पर दांव खेला तो बगवात कर सूरतराम नौटियाल ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोंक दी।
हालांकि, सूरतराम नौटियाल ने खुद को भटवाड़ी और डुंडा ब्लॉक को ओबीसी में शामिल करवाने का श्रेय देते हुए चुनावी प्रचार शुरू किया लेकिन जल्द ही उनका पूरा प्रचार प्रसार क्षेत्रवाद और जातिवाद पर ही सिमट कर रह गया। पूर्व के निर्दलीय प्रत्याशियों के मुकाबले उन्होंने दस हजार से अधिक वोट जुटाए लेकिन क्षेत्रवाद और जातिवाद के इर्दगिर्द घूमा उनका प्रचार तंत्र भी उन्हें जीत नहीं दिला सका और 2017 के विधानसभा चुनाव में पिछले तीन चुनावों की तरह ही मुख्य मुकाबला भाजपा के गोपाल रावत और कांग्रेस के विजयपाल सजवाण के बीच ही सिमट गया। इन चुनाव में गोपाल रावत ने तत्कालीन विधायक विजयपाल सजवाण को करीब दस हजार वोटों से मात दी।
गंगोत्री विधानसभा में भाजपा कांग्रेस के साथ ही बसपा, यूकेडी समेत अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी हर विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे हैं लेकिन ज्यादातर जमानत बचाने में भी सफल नहीं हो सके हां निर्दलीय के तौर पर उतरे प्रत्याशियों ने क्षेत्रवाद के नाम पर जमानत जब्त होने से तो बचा ली लेकिन जीत अब तक हासिल नहीं कर सके।
ऐसे में फिर से 2022 में क्षेत्रवाद, जातिवाद के नाम पर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी ताल ठोंकता है तो पूर्व में निर्दलीय प्रत्याशियों के परिणामों से सबक लेना जरूरी हो जाता है।
वैसे भी पहले विधानसभा से लेकर अब तक गंगोत्री विधानसभा भी राज्य में बने चुनावी माहौल के हिसाब से ही वोट डालती रही है। ऐसे में यहां मुख्य मुकाबला दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही सिमट कर रह जाता है।
इस बार जहां भाजपा की ओर से 2012 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके सुरेश चौहान को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है तो कांग्रेस की तरफ से दो बार के विधायक रहे विजयपाल सजवाण चुनावी मैदान में होंगे।
वहीं, भाजपा की ओर से टिकट की टकटकी लगाए दर्जन भर दावेदारों में से कौन सा दावेदार निर्दलीय चुनावी ताल ठोंकने का जोखिम लेता है वह आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा। हालांकि, भाजपा के टिकट वितरण के बाद से ही गंगोत्री विधानसभा में एक दावेदार की ओर से निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान भी कर लिया गया है लेकिन उनका अगला कदम क्या होगा वह आने वाले दिनों में ही पता चल सकेगा।