देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसोनी ने कहा कि ऋतु खंडूड़ी का यह कहना कि 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों का मामला 2016 के उपरांत नियुक्त कर्मचारियों से बिलकुल अलग है, पूर्वाग्रह से ग्रसित दिखाई पड़ता है। क्योंकि न सिर्फ कोटिया कमेटी बल्कि स्वयं विधानसभा का माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल के समक्ष प्रस्तुत काउंटर एफिडेविट राज्य निर्माण के बाद से सभी नियुक्तियों को अवैध बता रहा है और अब तो 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कार्मिकों को लेकर महाधिवक्ता की जो राय विधानसभा को मिली है, उसमें भी इन नियुक्तियों पर प्रश्नचिन्ह खड़े किए गए हैं।
दसौनी ने कहा तो सवाल यह है कि ऋतु खंडूड़ी किस आधार पर कह रही हैं कि 2015 से पहले वालों का मामला एकदम अलग है।
इससे साफ है कि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी इन कर्मचारियों पर मेहरबान हैं और कार्रवाई करने के बजाय इन्हें बचाने का प्रयास किया जा रहा है। दसौनी के अनुसार यह ऋतु खंडूड़ी का आधा अधूरा न्याय है और उन्होंने भेदभावपूर्ण तरीके से 2016 एवं इसके उपरांत नियुक्त कर्मचारियों को बाहर कर दिया। 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों को लेकर जो बयान उन्होंने दिया है, उससे साफ है कि वे उन पर कार्रवाई करने से बच रही हैं। दसौनी ने कहा कि दरअसल बात कुछ और ही है, अगर वे इन कर्मचारियों पर कार्रवाई करती हैं तो भाजपा के केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री के साले, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के छोटे भाई, मेयर की पत्नी, अपने पिता के सलाहकार की बेटी बाहर हो जाएंगी और शायद इतना साहस ऋतु खंडूड़ी में नहीं कि वह इन्हें बाहर कर दें।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने कभी विधिक राय का बहाना, कभी कोर्ट का बहाना तो कभी मामला ही अलग है का बहाना बनाकर 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों को बचाने का प्रयास किया है। सितंबर में जब 2016 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को बाहर निकाला गया तो खंडूड़ी ने कहा कि 2015 से पूर्व नियुक्त कर्मचारियों के संबंध में विधिक राय ली जाएगी। गरिमा ने कहा कि क्योंकि अपने चहेतों को बचाना था तो चार महीने तक तो विधिक राय नहीं ली गई। बर्खास्त कर्मचारियों के भारी दबाव तथा मीडिया के प्रेशर में जनवरी 2023 के प्रथम सप्ताह में चुपचाप महाधिवक्ता से राय ली गई तो उसे भी 15 दिन तक स्पीकर ऋतु खंडूड़ी द्वारा दबा कर रखा गया। मीडिया ने जब 18 जनवरी को खंडूड़ी से विधिक राय के संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा कि हमने सरकार से विधिक राय मांगी है और राय मिलने पर निर्णय लिया जाएगा, लेकिन महाधिवक्त को 09 जनवरी को ही विधिक राय विधानसभा को दे चुके थे।
दरअसल झूठ बोलने की एक वजह यह भी थी कि महाधिवक्ता ने अपनी विधिक राय में साफ-साफ लिख दिया था कि कोटिया कमेटी के अनुसार 2001 से 2022 के बीच नियुक्त सभी कर्मचारी अवैध हैं तथा कोटिया कमेटी ने 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों को क्लीन चिट भी नहीं दी है। महाधिवक्ता लिखते हैं कि उन्हें कोई ऐसे दस्तावेज भी विधानसभा ने नहीं दिए, जिससे यह पता चले कि 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों की नियुक्ति वैध है। अगर 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कार्मिकों की नियुक्ति वैध है तो महाधिवक्ता को दस्तावेज क्यों नहीं भेजे गए। साफ ही कि कहीं न कहीं दाल में काला ही नहीं पूरी दाल ही काली है
दसोनी ने साफ किया कि कांग्रेस पार्टी कभी भी किसी की नौकरी छिनने के पक्ष में नहीं रही है परंतु आंखों देखी मखी निगलना भी नामुमकिन है। बात बिल्कुल साफ है कि विधानसभा बैक डोर नियुक्ति मामला विधानसभा अध्यक्ष के गले की फांस बन चुका है। देखना है कि न्याय की देवी कब पूरा न्याय करती हैं।