नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्दयेश के निधन के बाद महीने भर तक 11 विधायक वाली कांग्रेस यह निर्णय नहीं ले सकी कि अगला नेता प्रतिपक्ष कौन होगा। महीने भर तक दिल्ली हरीश रावत प्रीतम सिंह पंवार की जंग का अखाड़ा बना रहा। प्रीतम ने कथित रूप से मात खाई और प्रदेश अध्यक्ष का पद गंवा कर नेता प्रतिपक्ष का पद मजबूरी में स्वीकारना पड़ा। उसी घटनाक्रम ने कांग्रेस के हरीश प्रीतम द्वंद की नींव डाल दी।
उत्तराखंड चुनाव का कार्यक्रम घोषित हुए दो हफ्ते होने को, नामांकन भी शुरू हो चुका है लेकिन कांग्रेस ने अब तक भी प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की। दिल्ली में जो प्रत्याशी हरीश रावत को पसंद, उनकी काट प्रीतम सिंह पेश कर रहे हैं जो प्रीतम सिंह द्वारा प्रस्तावित किए गए उन्हें हरीश रावत नकार रहे हैं। कांग्रेस में मचे इस द्वंद का खामियाजा हरक सिंह तक को उठाना पड़ा। जब हफ्ते तक उन्हें भी कांग्रेस में ठौर न मिला।
ऐसी कौन सी सूची हरीश-प्रीतम सिंह तैयार कर रहे हैं जिसे जारी करने में इतना वक्त ले रहे हैं।
आगाज यह है तो अंजाम क्या होगा। यह सब कुछ तब हो रहा है जब तक लोगांे ने वोट डालना भी शुरू नहीं किया, यदि कांग्रेस बहुमत जुटा सकी तो हरीश व प्रीतम सिंह के सत्ता संघर्ष का खामियाजा फिर से इस राज्य को उठाना होगा।
मुख्यमंत्री बनने को बेकरार हरीश रावत व प्रीतम सिंह ज्यादा से ज्यादा अपने गुट के प्रत्याशियों को मैदान में उतारक 11 मार्च के बाद की स्थिति अभी से स्पष्ट करना चाहते है। ऐसे में उत्तराखंड की जनता कांग्रेस पर भरोसा भी करें तो क्यों। जहां अभी ही सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा जैसी स्थिति बनी हुई है।
हां, कोई राहुल गांधी को भी बता दीजिए कि उत्तराखंड में मतदान 14 फरवरी को होने है इसलिए प्रत्याशियों की सूची नामांकन के आखिरी दिन से पहले तक जारी करने का भी नियम होता है।
वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुशवाल की फेसबुक वॉल से