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देहरादून: गुर्दा रोगियों को डायलिसिस के लिए बार-बार अस्पताल नहीं जाना पड़ेगा। अब उनका घर पर ही डायलिसिस हो जाएगा। दून मेडिकल कालेज चिकित्सालय में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत पेरिटोनियल डायलिसिस सेवा शुरू कर दी गई है। नेफ्रो यूनिट के प्रभारी डा. हरीश बसेड़ा ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दूरस्थ इलाकों के साथ ही बुजुर्ग मरीजों को इसका लाभ मिलेगा।
डा. बसेड़ा ने बताया कि बताया कि पेरिटोनियल डायलिसिस शरीर के अतिरिक्त द्वव्य को बाहर निकालने की प्रक्रिया है। यह शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बाहर निकालती है। मरीज की जांच करके पता लगा जाता है कि उसे हीमोडायलिसिस की जरूरत है या पेरिटोनियल डायलिसिस की। अगर पेरिटोनियल डायलिसिस की जरूरत हुई तो चिकित्सक मरीज के शरीर में कैथेटर डालेंगे। मरीज और उसके परिवार को इस तकनीक को सिखाया जाएगा। प्राचार्य डा. आशुतोष सयाना, एमएस डा. केसी पंत और डिप्टी एमएस डा. एनएस खत्री ने टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों को किट और दवा मुफ्त मिलेगी और अन्य को यह रियायती दामों पर उपलब्ध कराई जाएगी। बताया कि इस टीम में नर्सिंग प्रभारी कांति राणा, ऋतु थापा, मेघा, कुसुम भट्ट, रविंद्र, स्नेहा बिष्ट शामिल हैं।

क्या है पेरीटोनियल डायलसिस
इस प्रकार की डायलिसिस में अनेक छेदों वाली नली सीएपीडी कैथेटर को पेट में नाभि के नीचे छोटा चीरा लगाकर रखा जाता है। इस नली से दिन में तीन से चार बार डायलिसिस द्रव पेट में डाला जाता है और तय समय बाद उस द्रव को बाहर निकाला जाता है। डायलिसिस के लिए प्लास्टिक की थैली में रखा द्रव पेट में डालने के बाद खाली थैली कमर में पट्टे के साथ बांधकर आराम से घूमा-फिरा जा सकता है।

By amit